प्रार्थना, निर्भरता को दिखाती है।———————————–
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हम “परमेश्वर” पर निर्भर हैं ।
प्रार्थना, निर्भरता को दिखाती है। हम परमेश्वर पर अपने जीवन के आत्मिक, भौतिक एवं बौद्धिक इत्यादि क्षेत्रों के लिए निर्भर हैं। सुसमाचार के द्वारा हमें आत्मिक बातों के लिए प्रार्थना करने की समझ प्राप्त होती है। हम यह समझ जाते हैं कि हमारा उद्धार केवल त्रिएक परमेश्वर के द्वारा ही है और केवल वही हमारा प्रभु एवं राजा है त्रिएक परमेश्वर ही सब कुछ का स्रोत है। इसलिए, हम प्रार्थना में अपनी और अन्य विश्वासियों की आत्मिक उन्नति, पवित्रता में वृद्धि, परिपक्वता इत्यादि में बढ़ने एवं परमेश्वर को और अधिक जानने के लिए प्रार्थना करते हैं। ऐसी ही प्रार्थनाओं की शक्ति हम प्रार्थनाओं में पाते हैं ।
त्रिएक परमेश्वर ही सब कुछ का स्रोत है। इसलिए, हम प्रार्थना में अपनी और अन्य विश्वासियों की आत्मिक उन्नति, पवित्रता में वृद्धि, परिपक्वता इत्यादि में बढने एवं परमेश्वर को और अधिक जानने के लिए प्रार्थना करते हैं।
आत्मिक बातों के साथ-साथ हम अपनी भौतिक आवश्यकताओं के लिए परमेश्वर पर निर्भर होते हैं। निर्भरता के सम्बन्ध में प्रभु हमें इस क्रम को समझाने में सहायता करते हैं, “पहले तुम उसके राज्य और धार्मिकता की खोज करो, तो तुम्हें सब वस्तुएं (इच्छित नहीं, आवश्यक वस्तुएं) मिल जाएंगी” गैर-विश्वासियों के समान केवल भौतिक वस्तुओं के पीछे मत भागो, परन्तु अपनी प्राथमिकताएं बदलो। इसलिए हम प्रत्येक बात में परमेश्वर से प्रार्थना कर सकते हैं। प्रभु की शक्ति में बलवान बनो, क्योंकि हम आत्मिक युद्ध में हैं। वह विश्वासियों को स्मरण दिलाता है कि हमारे पास आत्मिक हथियार हैं और हमें युद्ध में सक्रिय रहना है। परन्तु वह यह आज्ञा नहीं देता है। वह कहता है कि “आत्मा में निरन्तर प्रार्थना करो!” “सतर्क रहो… और सब विश्वासियों-सन्तों के लिए प्रार्थना करो” क्योंकि हमारा युद्ध माँस या लहू से नहीं, परन्तु अन्धकार की शक्तियों एवं शासकों से है । शैतान शक्तिशाली है। हम निर्बल मनुष्य हैं, परन्तु परमेश्वर की कृपा से हमें आत्मिक युद्ध में शैतान का सामना करना है। परमेश्वर की कृपा से हम शैतान पर विजय पाते चले जाते हैं । इसलिए गुरुदेव ने कहा, “प्रार्थना करो ताकि तुम परीक्षा में न पड़ो !
अन्त में नया जन्म पाए हुए, का जीवन प्रार्थना से चिह्नित होगा। प्रभु के एक सेवक ने कहा, “प्रार्थना, श्वास के समान है। यदि हम जीवित हैं तो श्वास लेंगे ही लेंगे!” यह बात जीवन में प्रार्थना करने के सन्दर्भ में भी पूर्णतयः सटीक बैठती है। हम आत्मिक रीति से जीवित किए गए हैं। हमारा नया जन्म हो गया है। तो क्यों न हम परमेश्वर से प्रार्थना करें ,क्योंकि हम उस पर निर्भर हैं, और हमें आत्मिक युद्ध में उसकी आवश्यकता है। साथ ही साथ, हम उससे प्रेम करना चाहते हैं, उसके साथ संगति करना चाहते हैं।

😊शालिनी साहि 🙏🏻

धन्यवाद 🙏🏻
सेल्फ अवेकनिंग मिशन 🙏🏻

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