उदधरेतउद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत् ।
आत्मैव ह्रात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मन: ।।5।।
गीता के छठवें अध्याय का 5 श्लोक
अर्थ
भगवान कृष्ण जी ने मनुष्यो को बताते है की हमे अपना उद्धार स्वयं ही करना है । मनुष्य को चाहिए की वो खुद की सहायता से ही अपना उद्धार करे । क्योंकि हमारी आत्मा ही हमारी मित्र भी है और हमारी आत्मा ही शत्रु भी ।

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भगवान कृष्ण जी का ये एक प्यारा सा संदेश सभी प्राणी मात्र के लिए दिया गया है, की मनुष्य अपनी आत्मा का बोझ को खुद उठाए और अपनी आत्मा को नीचे न गिरने दे ।
संसार में सभी मनुष्यो का सच्चा साथी उसका अपना मन ही होता है । अपने मन को संभालते हुए स्वयं को ऊपर उठाए उसको नीचे न गिरने दे ,क्योंकि संसार में आकर जब हम भटकते जाते है उस समय हमारा मन ही हमे सच्ची राह दिखा सकता है ।

प्रभु से युक्त होने के लिए हमे अपनी इंद्रियों को वश में करने के लिए हमारा मन ही हमारी सहायता कर सकता है । अपनी इंद्रियों को वश में करने के लिए मन की अपनी शक्ति को बढ़ाना ,और योग द्वारा मन को संयम ,मे‌ रखना इंद्रियों को वश में करने के लिए बहुत आवश्यक होता है। मन का संयम ही हमे माया जगत से ऊपर उठाता है क्योंकि मनुष्य के लिए मन ही बंधन और मोक्ष का कारण माना जाता है ।

भगवान कृष्ण का ये संदेश अगर हमे मोक्ष की प्राप्ति करनी है तो हमारी सहायता हम खुदी कर सकते है किसी और के भरोसे ये कभी संभव नहीं हो सकता है।
हम ये सोचे की कोई आए हमे हमारे कष्टो से आकर हमे बाहर निकाले , कोई हमारे मुंह में ग्रास डालेगा ,कोई आकर हमारे जीवन में चमत्कार करेगा लेकिन शायद इस तरह कुछ भी होने वाला नहीं है । हमे अपना उद्धार स्वयं ही करना है ।जब तक आप अपनी खुद की शक्तियों को नही पहचानेंगे उनका उपयोग नहीं करेंगे तब तक ब्रम्हांड की शक्तियां भी आपका साथ नही देंगी ।

आपको अपना कल्याण करने के लिए स्वयं में ही आत्म निर्भर होना होगा। जब आप अपना ध्यान नही रखते है तो कोई दूसरा कोई क्यों आपका ध्यान रखेगा ?अगर आप किसी पर अपना बोझ डालना चाहते है तो कोई क्यों किसी का बोझ को ढोयगा‌ जबकि आप खुद ही नहीं अपना बोझ उठा सकते ।
आप अपने घर में भी तभी तक उपयोगी है जब तक की आपसे किसी को लाभ है ।‌ चढ़ते सूर्य को सभी प्रणाम करते है‌ । जो जितना ज्यादा उपयोगी होगा उतना ही पूज्यनीय भी होगा । इस लिए हमे ये ध्यान रखना है अपने मान सम्मान के लिए ,प्यार के लिए सभी रूपो में उपयोगी बनना ही होगा ।
अगर सूर्य उपयोगी है तो सारे ग्रह नक्षत्र भी उसी की परिक्रमा करते है ।

अगर आप अपने परिवार और समाज के लिए उपयोगी है तभी तक लोग आपको भी मान सम्मान देंगे । किसी पेड़ पर जब फल होते तभी उसके पास जीव जंतु कीट पतंग नजर आते है सूखे हुए तो‌‌ पेडो के पास कोई नही जाना नही चाहता ।
हमे भी अगर अपनी आत्मा की उन्नति करनी है तो हमे इसके लिए प्रयास भी खुद ही करने होंगे। कोई हमारे लिए अंदाज लगाए इससे अच्छा है हम खुदी अपने लक्ष्य प्राप्ति का प्रयास करे क्योंकि जिसको कंधे खोजने की आदत हो जाती है वो कभी अपने पैरो पर नही चल सकता है अगर जिंदगी चलानी है तो अपने ही कंधो पर दूसरे के कंधो पर तो अर्थिया उठाई जाती है । हमे अपने अंदर इतना जज्बा पैदा करना है की दूसरो के लिए भी लाठी बन सके।
।। ॐ।।

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