सबसे पहले हमें निराकार ईश्वर के गुणों को समझना होगा। जो निराकार परमात्मा है, उसका कोई आकार नही, उसका कोई रंग रूप नही, उसकी कोई सीमा नही है। अपने आसपास में महसूस करके देखें कि जो ये चारो तरफ आकाश है, जो ये खालीपन है, जब कुछ भी नही था, तब भी ये खालीपन था, जिसे आप परमात्मा मान सकते हैं। ये हर जगह है, जहां कुछ भी नही है, वहां ये है और जहां कुछ भी है, वहां भी यही है। अर्थात ये हर जगह मौजूद है।
ये आकाश अर्थात खालीपन हर परमाणु के भीतर इलेक्ट्रॉन और प्रोटान के बीच भी है। और दो ग्रहों के बीच में जो खालीपन है, वो भी यही है। दो आकाशगंगाओं के बीच में भी वही खालीपन है। इसका अर्थ यही है, कि ये खालीपन हर जगह मौजूद है। और सारा ब्रह्माण्ड उसी खालीपन के अंदर व्याप्त है। तो एकमात्र यही खालीपन सब जगह है।
आप सोच कर देखिए आपका घर मेरे घर से अलग हो सकता है, पर आपके घर के भीतर का खालीपन, क्या मेरे घर के भीतर के खालीपन से अलग है? बिलकुल भी नही, एक ही है, क्योंकि सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का खालीपन एक ही है। वो मेरे भीतर भी उतना ही है, जितना आपके भीतर है। और इतना ही वो सभी प्राणियों के भीतर है, चाहे वो इंसान है, चाहे वो जानवर है, चाहे वो पशु पक्षी है, चाहे पेड़ पौधे हैं, प्रकृति में हर जगह पर वो व्याप्त है।
तुलसीदास जी इसी स्वरूप की महिमा गाते हुए अपने ढंग से लिखते हैं–
“जड़ चेतन जग जीव जत सकल राममय जानि।
बंदउँ सब के पद कमल सदा जोरि जुग पानि॥”
अर्थात जड़ से लेकर चेतन तक, सब राममयी है, उनमें राम विराजमान हैं, यहां राम का मतलब राजा दशरथ के पुत्र राम की बात नही हो रही है। वो सब जड़ चेतन में सगुण रूप में तो ऐसे विराजमान नही हो सकते, तो निर्गुण रूप में वही राम जी कण कण में समाए हुए हैं, ऊर्जा के रूप में। निराकार रूप में उसी को हमने यहां राम या परमात्मा कहा। घट घट वासी भगवान कहा।
तो ये एक ही हैं, और अनंत रूपों में बिखरे हुए है, और अनंत होकर भी वो एक ही है। कोई उससे अलग नही और वो किसी से अलग नही है। सब उसमे समाए हैं और वो सब में समाए हुए हैं। इसे समझने के लिए एक विराट बुद्धि चाहिए, मेडिटेशन करके, अपने अहंकार को जब इंसान परमात्मा के विराट अस्तित्व में लीन कर देता है, तो इस परमात्मा की झलक पा लेता है।