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समझदार माता-पिता इस बात को अच्छी तरह समझ सकते हैं कि वो गर्भ में पल रही एक छोटी सी जान नहीं है बल्कि एक आत्मा है, और आत्मा सब कुछ जानती है. हाँ, उसका ब्रेन अभी डेवलप हो रहा है।
माँ इस बात को सदैव ध्यान में रखे कि “मेरे गर्भ में एक उत्तम और पवित्र आत्मा है और मैं जो भी संस्कार इसे दूंगी वो उसे पूरी तरह से ग्रहण करने में सक्षम है.”
मिथ्या भ्रम अक्सर माताएं समझती हैं कि उनके गर्भ में पल रहा बच्चा एक तुच्छ और नन्हीं सी जान है, उसे बाहरी संसार के बारे में कुछ नही पता. लेकिन अध्यात्मिक दृष्टि से देखें तो हो सकता है अब से 2-4 महीने पहले कोई बूढ़ा-बुजुर्ग शरीर छोड़कर गया हो और वो कोई वेल नोन आईडेंटिटी हो सकती थी. एक पूरी तरह सुलझा हुआ इंसान हो सकता था जो अब इस बच्चे के रूप में आया है.
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गर्भवती के मन की अवस्था का शिशु पर प्रभाव डॉ. अरनाल्ड शिवेल (न्यूरोलॉजिस्ट) कहते हैं कि यदि गर्भवती आधे घंटे तक क्रोध या विलाप कर रही हो तो उस दरमियान गर्भस्थ शिशु के मस्तिष्क का विकास रुक जाता है जिसका नतीजा गर्भस्थ शिशु कम वौद्धिक क्षमता के साथ जन्म लेता है। यह महत्वपूर्ण बात हम जानते ही नहीं हैं।
गर्भस्थ शिशु का मस्तिष्क न्यूरोन सेल्स से बना होता है। यदि मस्तिष्क में न्यूरोन सेल्स की मात्रा अधिक है तो स्वाभाविक रूप से शिशु के वौद्धिक कार्यकलाप अन्य शिशुओं की अपेक्षा बेहतर होते हैं।
गर्भवती के मन की अवस्था का शिशु पर प्रभाव आज की कम्प्यूटर भाषा में कहा जाए तो मस्तिष्क को हम हार्ड डिस्क कह सकते हैं। यह हाई डिस्क गर्भवती के मस्तिष्क से जुड़ी होती है।
फलस्वरूप गर्भवती के विचार, भावनाएँ, जीवन की ओर देखने का दृष्टिकोण, तर्क आदि गर्भस्थ शिशु के मस्तिष्क में संग्रहीत होता जाता है।
- परिणामतः जब वह इस जगत में आता है तो अपना एक अनूठा व्यक्तित्व लेकर आता है।
इसी के कारण आनुवांशिकत रूप से एक होते हुए भी दो भाइयों में भिन्नता दिखाई देती है क्योंकि प्रत्येक गर्भावस्था के दरमियान गर्भवती की मनोदशा भिन्न होती है।
आज गर्भवती अपने गर्भस्थ शिशु को संस्कार देकर तेजस्वी संतान प्राप्त कर सकती है।
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शालिनी साही
सेल्फ अवेकनिंग मीशन