हमारे सनातन धर्म में मनुष्य के लिये वेदों में चार पुरुषार्थों का नाम लिया गया है – धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष। इसलिए इन्हें ‘पुरुषार्थचतुष्टय’ भी कहते हैं। महर्षि मनु पुरुषार्थ चतुष्टय के प्रतिपादक हैं।

पुरुषार्थ का अर्थ होता है लक्ष्य जिसे प्राप्त करना मनुष्य को प्राप्त कर पूर्णता की प्राप्ति होती है। आइए इसे समझते हैं–

1. धर्म

धर्म अर्थात नीति पूर्वक आचरण युक्त होकर चलाना, नैतिक, सामाजिक, मानवीय मूल्यों से युक्त होकर अपने जीवन को जीना। और स्वजन हिताय बहुजन सुखाए की कामना करना। सिर्फ मेरा नही सबका कल्याण हो। आध्यात्मिक मूल्यों पर चलना और अपनी आत्मा को श्रेष्ठतम ऊंचाइयों तक ले जाना धर्म है।

2. अर्थ

अर्थ का मतलब है, अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु अपनी मेहनत से धन अर्जित करना। शुभ तरीकों से धन की प्राप्ति, और शुभ कार्यों हेतु इसे लगाना। धन से अपने और अपने परिवार की, समाज की सेवा करना।

3. काम–

काम अर्थात कामनाएं या इच्छाएं जिसके लिए मनुष्य जीवन भर यत्न करता है, उनकी पूर्ति करना। जैसे अच्छा परिवार, खुशियां, रिश्ते, मान सम्मान, पद आदि। इनकी पूर्ति से तृप्त होकर आत्मा के कल्याण के लिए आगे बढ़ना चाहिए, इनमे आसक्त नही होना चाहिए।

4. मोक्ष

सबसे महत्वपूर्ण लक्ष्य है, मनुष्य जीवन का मोक्ष प्राप्ति। अर्थात संसार और स्वयं को जानकर इससे मुक्त हो जाना। जानना कि मैं कौन हूं, क्यों मेरा जन्म हुआ है। और इच्छाओं, वासनाओं, विकारों और अहंकार से मुक्त होकर अपने परमात्मा में लीन हो जाना। चौरासी लाख योनियों में मनुष्य इसी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए भटकते रहता है। यही अंतिम सत्य है जीवन का खुद को जानना और खुद परमात्मा हो जाना।

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