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जाने राम भक्त हनुमान जी के वानर रूप के रहस्य:-

पौराणिक ग्रंथों में वर्णित कथा के अनुसार बजरंग बली की माता अंजनी अपने पूर्व जन्म में इन्द्रराज के महल में अप्सरा थीं। उनका नाम पुंजिकस्थला था। उनका रूप बहुत आकर्षक और स्वभाव चंचल था। एक बार चंचलता के कारण उन्होंने तपस्या में लीन एक ऋषि के साथ अभद्र व्यवहार किया तब ऋषि ने क्रोध में पुंजिकस्थला को श्राप दिया की वो बानरी का रूप ले लेगी। ऐसा श्राप सुनकर पुंजिकस्थला को आत्मग्लानि हुई और उसने ऋषि से क्षमा मांगकर श्राप को वापस लेने के लिए विनती की तब ऋषि ने दयाभाव से कहा की तुम्हारा वानर रूप भी परमतेजस्वी होगा और तुम एक बहुत ही कीर्तिवान और यशस्वी पुत्र को जन्म दोगी।


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बजरंगबली हनुमान जी का जन्म किस प्रकार हुआ और क्यों उनको वानर रूप मिला ?
इंद्रदेव के पूछे जाने पर पुंजिकस्थला ने बताया कि मुझे प्रतीत हुआ कि वो ऋषि एक वानर हैं और मैंने उन ऋषि पर फल फेंकना शुरू कर दिए परन्तु वो कोई साधारण वानर नहीं अपितु परम तपस्वी साधु थे। मेरे द्वारा तपस्या भंग होने के कारण उन्होंने मुझे श्राप दिया जब भी मुझे किसी से प्रेम होगा तो मैं वानर का रूप धारण कर लूंगी। मेरा ऐसा रूप होने बाद भी उस व्यक्ति का प्रेम मेरे प्रति कम नहीं होगा। इंद्रदेव ने पूरा वृत्तांत सुनने के बाद कहा कि तुम्हे धरती पर जाकर निवास करना होगा, वहां तुम्हे एक राजकुमार से प्रेम होगा जो तुम्हारा पति बनेगा। विवाह के पश्चात तुम शिव के अवतार को जन्म दोगी और फिर तुम्हे इस श्राप से मुक्ति मिल जाएगी ।
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हनुमान जी ने क्यों लिया था पंचमुखी अवतार ?

इंद्र के वचन सुनकर पुंजिकस्थला अंजनी के रूप में धरती पर निवास करने लगी। उसे वन में एक बार एक युवक दिखा जिसकी और वो आकर्षित हुई। जैसे ही उस युवक ने अंजनी को देखा अंजनी का चेहरा वानर का हो गया। अंजनी ने युवक से अपना चेहरा छुपाया। जब युवक उनके पास आया तो अंजनी ने कहा मैं बहुत बदसूरत हूँ परन्तु जब अंजनी ने उस युवक की ओर देखा तो वो भी वानर रूप में ही था। उस युवक ने बताया कि मैं वानरराज केसरी हूँ और जब चाहूँ तब मनुष्य रूप धारण कर सकता हूँ। दोनों को एक दूसरे से प्रेम हुआ और वे विवाह के बंधन में बंध गए।
कुछ समय पश्चात जब दोनों संतान सुख से वंचित रहे तब अंजनी मातंग ऋषि के पास पहुंची और अपनी पीड़ा बताई तब मातंग ऋषि ने उन्हें नारायण पर्वत पर स्थित स्वामी तीर्थ जाकर १२ वर्ष तक उपवास करके तप करने के लिए कहा। तब एक बार वायु देव ने अंजनी की तपस्या से प्रसन्न होकर वरदान दिया कि तुम्हे अग्नि, सूर्य, सुवर्ण, वेद वेदांगों का मर्मज्ञ और बलशाली पुत्र प्राप्त होगा। यह वरदान प्राप्त होने के पश्चात वे शिव जी की तपस्या करने लगीं तब शिव जी ने प्रसन्न होकर उन्हें वरदान मांगने के लिए कहा तब अंजना ने ऋषि द्वारा मिले श्राप के विषय में बताते हुए कहा कि इस श्राप से मुक्त होने के लिए मुझे शिव के अवतार को जन्म देना है, इसलिए कृपया आप बालरूप में मेरे गर्भ से जन्म लें। शिव जी ने अंजनी को आशीर्वाद दिया और अंजना के गर्भ से बजरंग बलि के रूप में शिव जी ने जन्म लिया। अंजनी पुत्र होने के कारण हनुमान जी को आंजनेय भी कहा जाता है।
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हनुमानजी के गुरु कौन थे?

शिव, पवनदेव और अन्य देवताओं के अलावा मतंग ऋषि के शिष्य थे हनुमानजी । हनुमानजी ने कई लोगों से शिक्षा ली थी। सूर्य, नारद के अलावा एक मान्यता अनुसार हनुमानजी के गुरु मातंग ऋषि भी थे। मतंग ऋषि शबरी के गुरु भी थे। कहते हैं कि मतंग ऋषि के आश्रम में ही हनुमानजी का जन्म हुआ था।
मतंग ऋषि के यहां माता दुर्गा के आशीर्वाद से जिस कन्या का जन्म हुआ था वह मातंगी देवी थी। दस महाविद्याओं में से नौवीं महाविद्या देवी मातंगी ही है। यह देवी भारत के आदिवासियों की देवी है। दस महाविद्याओं में से एक तारा और मातंग देवी की आराधना बौद्ध धर्म में भी की जाती हैं। बौद्ध धर्म में मातंगी को मातागिरी कहते हैं।
भारत के गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, केरल आदि राज्यों में मातंग समाज के लोग आज भी विद्यमान है। मान्यता अनुसार मातंग समाज, मेघवाल समाज और किरात समाज के लोगों के पूर्वज मातंग ऋषि ही थे। श्रीलंका में ये आदिवासी समूह के रूप में विद्यमान है। कुछ विद्वानों अनुसार मेघवाल समाज भी मातंग ऋषि से संबंधित है। ये सभी मेघवंशी हैं।
सेतु एशिया नामक एक वेबसाइट ने दावा किया है कि श्रीलंका के जंगलों में एक आदिवासी समूह से हनुमानजी प्रत्येक 41 साल बाद मिलने आते हैं। सेतु के शोधानुसार श्रीलंका के जंगलों में एक ऐसा कबीलाई समूह रहता है जोकि पूर्णत: बाहरी समाज से कटा हुआ है। इसका संबंध मातंग समाज से है जो आज भी अपने मूल रूप में है। उनका रहन-सहन और पहनावा भी अलग है। उनकी भाषा भी प्रचलित भाषा से अलग है। हालांकि इस बात में कितनी सचाई है यह कोई नहीं जानता ।
उल्लेखनीय है कि कर्नाटक में पंपा सरोवर के पास मतंग ऋषि
का आश्रम है जहां हनुमानजी का जन्म हुआ था। इस समूह का
कहीं न कहीं यहां से संबंध हो सकता है। श्रीलंका के पिदुरु पर्वत
के जंगलों में रहने वाले मातंग कबीले के लोग संख्या में बहुत
कम हैं और श्रीलंका के अन्य कबीलों से काफी अलग हैं।
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क्यों सिन्दूर चढ़ता है हनुमानजी को ? :
हनुमानजी को सिन्दूर बहुत ही प्रिय है। इसके पीछे ये कारण बताया जाता है कि एक दिन भगवान हनुमानजी माता सीता के कक्ष में पहुंचे। उन्होंने देखा माता लाल रंग की कोई चीज मांग में सजा रही है। हनुमानजी ने जब माता से पूछा, तब माता ने कहा कि इसे लगाने से प्रभु राम की आयु बढ़ती है और प्रभु का स्नेह प्राप्त होता है।
तब हनुमानजी ने सोचा जब माता इतना सा सिन्दूर लगाकर प्रभु का इतना स्नेह प्राप्त कर रही है तो अगर मैं इनसे ज्यादा लगाऊं तो मुझे प्रभु का स्नेह, प्यार और ज्यादा प्राप्त होगा और प्रभु की आयु भी लंबी होगी। ये सोचकर उन्होंने अपने सारे शरीर में सिन्दूर का लेप लगा लिया। इसलिए कहा जाता है कि भगवान हनुमानजी को सिन्दूर लगाना बहुत पसंद है।
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हनुमान बाण के लाभ

अगर किसी व्यक्ति को बुरी और अदृश्य शक्तियां परेशान करती हैं तो उसे नियमित रूप से रोज़ाना हनुमान बाण का पाठ क रना चाहिए. ऐसा करने से उसे पढ़ने से संकट से मुक्ति मिल जाती है.
अगर आपसे अनजाने में कोई अपराध हो गया. इसलिए ग्लानि महसूस करते हैं और क्षमा मांगना चाहते है तो बाण का पाठ करें. इसका पाठ आपको क्षमा करके आपको अपराध से मुक्त कर देगा. भगवान गणेश की तरह हनुमानजी भी कष्ट हरते हैं. ऐसे में हनुमान बाण का पाठ करने से भी लाभ मिलता है. हनुमान बाण पढ़ ने से मन शांत होता है तनाव मुक्त हो जाता है.
अगर आप कहीं यात्रा पर जा रहे हैं, तो ज़ाहिर तौर पर आप चाहेंगे कि यात्रा सुखद हो. ऐसे में हनुमान बाण पढ़ लेने से वाक़ई यात्रा सुरक्षित बीत जाती है और यात्रा के दौरान भय नहीं लगता..
किसी भी तरह की अभिलाषा होने पर हनुमान बाण का पाठ करने से लाभ मिलता है. हनुमान बाण के पाठ से दैवीय शक्ति मिलती है. इससे सुकून मिलता है.
ऐसी मान्यता है कि कलियुग में एक मात्र हनुमानजी ही जीवित देवता हैं.
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नासे रोग हरे सब पीरा ।
जो सुमिरै हनुमंत बलबीरा ॥

हनुमानजी और हनुमान चालीसा का हेल्थ कनेक्शन भी है. हनुमान चालीसा की चौपाई – नासै रोग हरै सब पीरा, जो सुमिरै हनुमत बलबीरा तंदुरुस्ती को समर्पित है.
जय श्री राम जय जय हनुमान 🌹
शालिनी साही
सेल्फ अवेकनिंग मिशन

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