ज्ञान चाहिए तो गुरु से सीखें। सृष्टि पर हर एक चिज़ के गुरु उपलब्ध हैं।

भौतिक जगत का ज्ञान चाहिए तो, वैसे गुरु ढुंढे। और अगर अध्यात्मिक जगत का, आत्मा के जगत का ज्ञान चाहिए तो वैसे सद्गुरु ढुंढे।

जो जींस चीज में तज्ञ होगा, वहीं उस चीज का सही से ज्ञान दे पाएगा।

हमे जो भी चीज का ज्ञान चाहिए, सही मार्गदर्शन में उसके निरंतर अभ्यास से हम उसके तज्ञ बनते जाते हैं, और फिर वह ज्ञान हमारा अनुभवात्मक ज्ञान हो जाता है।

भौतिक जगत में भी हमें जो भी ज्ञान चाहिए, उसे पहले हम कही से सीखते हैं। फिर एक दिन उसकी एक्झाम होती है। फिर उसके अनुभव के लिए हम कहीं इंटर्नशिप करते हैं। और फिर इतनी सारी प्रोसिजर के बाद कुछ दिनों में हम उसके एक्सपर्ट होते हैं। भौतिक ज्ञान ऐसे मिलता है।

अध्यात्मिक ज्ञान सद्गुरु और गीता से प्राप्त होता है। परमात्मा ने गीता का ज्ञान केवल अर्जुन के लिए नहीं दिया। वह अर्जुन हम ही हैं।

गीता का ज्ञान हमारे लिए ही है। गीता को सदगुरु से समझते हैं, तो वह जल्द समझ आतीं हैं।

अध्यात्मिक ज्ञान प्राप्ती के लिए हम पहले वैसे अध्यात्मिक तज्ञ, आत्मा के ज्ञानी पुरुष के शरण में जातें हैं। वहां उनके सानिध्य में या संपर्क में कुछ दिनों तक रहकर विनम्रता पूर्वक सिखते है। फिर ध्यान, एकाग्रता का अभ्यास करते हैं। और फिर ध्यान-मौन और एकाग्रता के अभ्यास से धीरे निर्विकल्प समाधि तक पहुंचते हैं। तब हमें आत्मा का अनुभव होता है। और ऐसे ही आगे चलकर हम उसके तज्ञ बनते जाते हैं। गुरुतत्व के शरण में रहकर आगे के चलकर गुरु परंपरा का एक हिस्सा बनते हैं।

सच्चा ज्ञान चाहे भौतिक हो चाहे अध्यात्मिक, अनुभवात्मक होता है। पहले शिक्षा और फिर अनुभव। सब जगहों पर ऐसा ही है।
धन्यवाद।

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