सूक्ष्म शरीर, जीव,और आत्मा में क्या अंतर है, इनका क्या कार्य है?
शास्त्रों में हम पंच कोषों की बात करते हैं, या हमने सुनें है, उसमें से स्थूल शरीर अन्नमय कोष हैं। पंच महा भूतों से निर्मित इस स्थूल शरीर को अन्नमय कोष कहते हैं। और आत्मा + मन और बुद्धि + और यह अन्नमय कोष यानी यह स्थूल शरीर = मनुष्य। इन सबका संयुक्त मिश्रण मनुष्य है।
मनुष्य के स्थूल शरीर के पिछे कार्य करने वाला एक सुक्ष्म शरीर होता है, जो स्थूल शरीर का कारण है।
यह सुक्ष्म शरीर दस इंद्रियां, मन, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार, अज्ञान, काम और कर्मों से बनता है। इसलिए इसे कर्म शरीर या कारण शरीर भी कहते हैं। स्थूल शरीर केवल इस सुक्ष्म शरीर के इच्छाओं का अनुभव करने का साधन है। और यह स्थूल शरीर ही सुक्ष्म शरीर के पिछे के साक्षी चेतन को जानने का भी साधन है।
स्थूल शरीर का कारण, उसके पिछे सुक्ष्म शरीर हैं और इस सुक्ष्म शरीर के पिछे आत्मा साक्षी रुप में विद्यमान है।
हम इसे ऐसा समझते हैं। आत्मा रुपी चेतन शक्ति ( एक पावरहाउस)
सुक्ष्म शरीर ( बिजली का कनेक्शन, मीटर)
मन (बटन या बोर्ड) और
स्थूल शरीर ( पंखा या कोई बिजली पर चलने वाला एक उपकरण)
पंखा रुपी, या उपकरण रुपी मनुष्य शरीर मन रुपी बटन से चलता है, लेकिन उसके पिछे उसका कारण सुक्ष्म शरीर होता है और चेतन साक्षी आत्मा इन दोनों का साक्षी होता हैं। सुक्ष्म शरीर में ऐसे बहुत से बीज होते हैं जो वह स्थूल शरीर के माध्यम से अनुभव करता है। वह उन बीजों का स्वाद, सुख दुःख अनुभव करता है।
सुक्ष्म शरीर स्थूल शरीर और चेतना दोनों को जोड़ने की कड़ी है। जब यह चेतन साक्षी से जुड़ता है तो मोक्ष में जाता है और जब यह चेतन साक्षी से हटकर अन्य चीजों से एकरुप होता है तो बंधन में पड़ता है। इसी के कारण जन्म और मृत्यु है। यही अपने अनुभव के लिए शरीर की निर्मिती करता है और इसका स्थूल शरीर बनता और मरता रहता है।
स्थूल शरीर की मृत्यु होती है लेकिन सुक्ष्म शरीर तब-तब जीवित रहता है जब-तक उसके भीतर के बीज नष्ट नहीं होते। जब-तक वह उस बीजों के कारण को, अपने पीछे के चेतन साक्षी को नहीं जानता, और उससे एकरूप नहीं होता।
यह सुक्ष्म शरीर जब अपनी निर्विचार निर्विकार शुन्य चेतन साक्षी ऊंची अवस्था को, अपने चेतन साक्षी को जान जाता है तो उसी निर्विचार निर्विकार चेतन शुन्य अवस्था में उसका विलय हो जाता है। तब वह नष्ट होता है, यही उसका मोक्ष है।
स्थूल शरीर इस सुक्ष्म शरीर का साधन है, स्थूल शरीर कठपुतली की तरह कार्य करता है।
सुक्ष्म शरीर की मृत्यु, और उसका चेतन-साक्षी में विलय होना ही मोक्ष है, स्थूल शरीर तो माटी है, अन्न है उसका तो मोक्ष होना ही है, उसका तो माटी में मिलना ही है। असली मोक्ष सुक्ष्म शरीर का होता है।
इसे जबरदस्ती साधना में लगाना पड़ता है। इसके भीतर के बीजों और संस्कारों के कारण यह लगता नहीं है। और गुरु के मार्गदर्शन में ध्यान साधना से जैसे जैसे यह सुक्ष्म शरीर शुद्ध होता जाता है, इसका मन रुपी बटन निर्विचार निर्विकार स्थिर होता है। शुन्यता में टिकता है। तब उसे अपने भीतरी चेतन-साक्षी का अहसास अनुभव होता है। दोनों मिल जाते हैं, बाहर से देह होती है, लेकिन भीतर से विदेह चेतन-साक्षी अवस्था हों जातीं हैं। यह मुक्त अवस्था है।
धन्यवाद!