कर्म बड़ा है, कर्म प्रधान है, कर्म सर्वोपरि है। कर्मों से ही भाग्य बनता है। कर्मों से ही भाग्य का निर्माण होता है।

मनुष्य खुद अपने कर्मों द्वारा अपने भाग्य को लिखता है। कर्मों का जो फ़ल होता है, वह भाग्य होता है। जैसे हमारे कर्म होंगे वैसा हमारा भाग्य होगा। इसलिए कर्मों के बारे में सचेत होना, जागना बहुत जरूरी है। हमे कर्म सिद्धांत का ज्ञान होना बहुत जरूरी है। प्रकृति कर्मों के अधीन चलती है, भगवान खुद कर्मों के सिद्धांत में दखलंदाजी नहीं करतें।

“कर्म प्रधान विश्व रचि राखा।
जो जस करहि सो तस फल चाखा।”

कर्म प्रधान है, भाग्य के लिखने में कर्म मुख्य है।
हर व्यक्ति स्वयं अपना भाग्य विधाता है और अपने अच्छे बूरे कर्मों के जरिए अपने भाग्य को खुद लिखता है।

हमारे ही हाथों रोज़ हमारा, मनुष्यों का भाग्य लिखा जा रहा है और हमे उसके बारे में पता ही नहीं होता।

पिछले जीवन में हमने काया वाचा मन और कृति से जो अच्छे बूरे कर्म करे वह आज़ हमारा भाग्य है। आज़, अभी, वर्तमान में जो हम कर रहे है या करेंगे। कल भविष्य में वह हमारा भाग्य बनेगा। यह प्रकृति का अटल नियम है और इसे ही कर्मों का सिध्दांत कहते हैं।

इस कर्म और भाग्य को तत्व से जानने के लिए आप हमारी “कर्मों की खेती” किताब पढ़ सकते हैं। संजीव मलिक लिखित “कर्मों की खेती” अमेज़न स्टोर पर सर्च करेंगे तो पता लग जाएगा। उसमें हमने बड़े विस्तार से कर्म, कर्मफल और उसके अच्छे बूरे परिणामों के बारे में लिखा है।

तों हम स्वयं ही अपने स्वयं के भाग्यविधाता है और अपने कर्मों से अपना भाग्य खुद लिखते हैं। जैसे हमारे कर्म होंगे वैसा हमारा भाग्य होगा। और भाग्य को भी नए अच्छे सत्कार्यों द्वारा, सत्कर्मों द्वारा बदला जा सकता है।
धन्यवाद!

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