मृत्यु के बारे सबके अलग-अलग विचार और मृत्यु के वक्त सबकी अलग-अलग स्थिति होती है।
मृत्यु किसी के लिए अच्छी या किसी के लिए बूरी हो सकती है। किसी रोग से या पीड़ा से जूझने वाले व्यक्ति के लिए मौत अच्छी है। संसार में, चीजों में, धन, पत्नी और बच्चों में आसक्त मनुष्यों को मौत दुःखदाई है। और एक आत्मज्ञानी के लिए मृत्यु जैसी कोई चीज नहीं है। उसके लिए जीवन और मृत्यु समसमान है।

यहां जो सभी मायीक बंधनों से पार है, जो आत्मा में जी रहा है, ऐसे आत्मज्ञानी महापुरुष के लिए मृत्यु एक सहज घटना है। और वही मृत्यु आम संसारियो के लिए, अज्ञान के आवरणों में जी रहे लोगों के लिए हैं दर्द भरी।

संसारियो को मृत्यु अप्रिय घटना है और आत्मज्ञानी जन्म और मौत से पार होता है। क्योंकि मृत्यु तो केवल शरीर की होती है, मौत दृश्य की होती है और आत्मज्ञानी एक द्रष्टा है। उसके लिए मृत्यु प्रकृति का खेल है।

दृश्य प्रकृति, पृथ्वी मां मृत्यु भूमि है। इसे मृत्यु भूमि कहते हैं। जो आत्मज्ञानी है, जो चेतना में जीता और जागा हुआ है वह रोज़ ही मृत्यु को देखता है। उसे पता है कि मृत्यु के बाद भी जीवन हैं, मृत्यु में एक शरीर के सिवा बाकी कुछ भी खतम नहीं होता। उसके लिए कोई मृत्यु नहीं होती।

अगर जीवन रहते हम मन वचन कर्म से कुछ अच्छे कर्म करते है तो उनके लिए मौत अच्छी है। क्योंकि मृत्यु के बाद कर्मों के हिसाब से उन्हें और अच्छी ड्रेस यानी और अच्छी मनुष्य देह प्रकृति की तरफ से दि जाएगी। तब पुरानी देह, पटी पुरानी ड्रेस का दुःख करने का कुछ कारण ही नहीं। लेकिन जिनके कर्म ख़राब है तो बेशक उनके लिए मृत्यु एक दुखदाई घटना है।
धन्यवाद!

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