आत्मा तो हमेशा होती है ना! आत्मा का अस्तित्व हमेशा होता है, चाहें गहरी निद्रा हों या शरीर की मृत्यु।
गहरी निद्रा में आत्मा शरीर के भीतर ही रहतीं हैं और मृत्यु में शरीर से बाहर होकर। चेतना तथा आत्मा अक्षय है, अजर-अमर है। वह शरीर के गहरी निद्रा में भी बनीं रहतीं हैं और शरीर के मृत्यु के बाद भी।
जीवन अनंत है, मृत्यु एक छोटी-सी घटना और गहरी निद्रा उससे भी छोटी घटना। गहरी निद्रा एक छोटी-सी, लेकिन मृत्यु जैसी ही एक स्थिति है।
गहरी निद्रा में हम तो होते हैं, आत्मा तो होती है पर हमारे होने का या जगत के होने का कोई बोध हमे नहीं रहता। सुख-दुःख, मान-अपमान, प्रेम और नफ़रत का कोई बोध नहीं रहता। गहरी निद्रा में हम होते हैं, आत्मा होती है, पर हम या आत्मा प्रकृति से परे हो जातें हैं। कुछ घंटों के लिए हम अपने मूल रूप शांत, प्रशांत, परम् शांत अवस्था में जातें हैं।
जागृति जीवन है और बेहोशी मृत्यु।
गहरी निद्रा में कुछ समय या कुछ घंटों के लिए हमारे भीतर विचारों का, दुनिया का, समय का कोई अस्तित्व नहीं रहता लेकिन हम होते हैं। फिजिकल देह का बोध नहीं रहता लेकिन चेतना या आत्मा का अस्तित्व उसी देह में होता है।
मृत्यु के बाद भी विचारों, फिजिकल देह का अस्तित्व नहीं रहता, लेकिन देह से अलग होकर चेतना या आत्मा तभी भी जीवित रहतीं हैं। गहरी निद्रा और मृत्यु, दोनों में बस थोड़ा-सा फर्क है, गहरी निद्रा और मृत्यु की स्थिति थोड़ी बहुत एकसमान है।
मृत्यु एक परम नींद हैं और गहरी नींद एक छोटी-सी मृत्यु।
गहरी निद्रा हमे मृत्यु का बोध कराती है, नित्य और निरंतर क्या है और अशाश्वत अनिरंतर क्या है का बोध कराती है। आत्मा निरंतर है नित्य है, शाश्वत है, और शरीर-सकल संसार अनित्य। गहरी नींद से यह साबित होता है कि हमारी आत्मा अलग है और शरीर अलग। शरीर के न होने के बाद भी, शरीर का बोध न रहने के बाद भी आत्मा का अस्तित्व कायम रहता है। हमारा अस्तित्व हमेशा बना रहता है, हम शरीर नहीं, शरीर के भीतर रहने वाली एक अजर-अमर आत्मा है।
जो लोग गहरी निद्रा को समझते हैं वे लोग मौत को भी समझते हैं।
गहरी नींद में हम हम नहीं रहते, लेकिन उसी में जागते हैं और मृत्यु में भी हम हम नहीं रहते लेकिन दुसरे शरीर में जागते हैं, फर्क बस इतना सा ही है।
गहरी नींद में हमारी सारी पहचानें खतम हो जाती है, लेकिन हम होते हैं, आत्मा होती है, और यह हम नहीं जानते। मृत्यु के बाद भी हमारी सारी पहचानें खतम हो जाती है और तब भी हम कही होते हैं, और हम यह भी नहीं जानते।
निद्रा और मृत्यु दोनों में बस थोड़ा-सा फर्क है, एक में आत्मा उसी शरीर में होती है, उसी में जागती है। और एक में यानी मृत्यु में अन्य शरीर में जागती है, या विदेही अवस्था मे कही भटकती रहतीं हैं।
गहरी नींद में कुछ घंटों के लिए शरीर और मन पुरी तरह से आराम मे होते हैं आत्मा कभी नहीं सोती। और मृत्यु भी एक लंबी आराम की अवस्था है। उस मृत्यु रुपी लंबे आराम के बाद चेतना जब जागतीं है, तब दुसरे अन्य नए शरीर में जागती है, और अपने भूतकाल के हिसाब से, पिछले कर्मों के हिसाब से आगे की यात्रा करती रहती है। जैसे कल के हिसाब से हमारे आज़ के नये दिन की शुरुआत होती है। बस शरीर बदलता है, परिस्थितियां बदलती है आत्मा कभी नहीं बदलतीं, दोनों स्थितियों में आत्मा वैसे की वैसी बनी रहती है।
गहरी नींद में धड़कन और श्वासो के जरिए व्यक्ति जीवित रहता है और मृत्यु के बाद कर्मों के जरिए।
गहरी नींद में हम कुछ घंटों के लिए ग़ायब हो जातें हैं और मृत्यु में हमेशा के लिए। गहरी नींद में कुछ घंटों बाद उसी शरीर में जागरण होता है और मृत्यु में दूसरे शरीर में।
गहरी निद्रा प्रकृति से परे की अवस्था है। गहरी निद्रा तीन चार घंटे की मृत्यु जैसी ही स्थिति है, इसलिए संतों ने गहरी निद्रा को मौत की उपमा दी है।
धन्यवाद!