नहीं! नहीं कर सकते। गुरु के बिना हम अपने जीवन में पूर्ण की या पूर्णता की प्राप्ति नहीं कर सकते।
जैसे सुर्य प्रकाश में अंधेरा भाग जाता है, ठीक वैसे ही सद्गुरु के जीवन में आते ही हमारे भीतर का अज्ञान अंधेरा हट जाता है। अंतर्मन में पड़े दोषों के अनेकों आवरण गुरु के बिना नहीं हटते। गुरु आवश्यक है, गुरु के बिना हम मनुष्य अधुरे है।
हम अधुरे है, हम कुछ नहीं जानते। जो इह में सौख्य, शांति और पर में परम् मुक्ति चाहते हैं, जो अपने भीतर छिपे परमतत्व को जानना चाहते हैं, उन्हें गुरु आवश्यक है। गुरु की कृपा से ही हम अपने भीतर की, अपने स्वरूप की वास्तविकता को जान पाते हैं। सदगुरु हर हाल में आवश्यक है, सदगुरु के बिना हम मनुष्य अधुरे है।
हमारी एक बहेन है, बचपन से ईश्वर भक्त रही है। उसके घर में कोई देवी मां के भक्त, शिव भक्त थे, तो उसे लगता था कि वह बहुत कुछ जानतीं है। लेकिन जब वह हमारे गुरुदेव से मिलीं, उनकी दिक्षा, उनके दर्शन, उनकी कुछ अनुभूतियां उसे हुईं। और तब वह हंसने लगी। हमने पूछा कि कुछ बोलते नहीं हो, और केवल हंस रहे हों क्या बात है। तब उन्होंने कहा कि आज़ मेरे सब भ्रम दूर हुएं हैं। आज़ सद्गुरु से मिलकर मुझे यह एहसास हुआ है कि मैं अभी तक केवल अध्यात्म की एबीसीडी ही जानती हूं। और इसलिए मुझे अपने आप पर हंसी आ रही थी।
गुरु कृपा से ही कर्म दोष क्षीण होते हैं। सत्य के ज्ञान से ही समस्त संशय, समस्त भ्रम दुर होते हैं। और सत्य का ज्ञान केवल सदगुरु ही करा सकते हैं। सदगुरु पुर्ण है, सद्गुरु ज्ञान की गंगा है, अधुरा शिष्य उसमें डुबकियां लगाता रहता है, सीखता रहता है, पूर्णता की ओर जाता रहता है। सदगुरु आवश्यक है, सद्गुरु के बिना हम मनुष्य अधुरे है।
ज्ञान, योग, विवेक-वैराग्य के दाता हैं सद्गुरु।
भवरोगो के डाक्टर है सद्गुरु।
सच्चिदानंद व्यक्त व अव्यक्त परब्रम्ह है सद्गुरु।
सर्वव्यापक और प्रत्यक्ष भी है सद्गुरु।
अनंत महिमा है सदगुरु की। सदगुरु आवश्यक है, सद्गुरु के बिना हम मनुष्य अधुरे है।
गुरु की जो महिमा है वह बहुत बड़ी है, बहुत ऊंची हैं, गुरु के बगैर हम मनुष्य कुछ भी नहीं होते। बेशक हमारे पास रुप-यौवन धन-सम्पत्ति परिवार है, लेकिन अगर हमारे पास सदगुरु नहीं है तो हम भीखारी ही है। मनुष्य जीवन है, तो इस अनमोल मनुष्य जीवन में सदगुरु आवश्यक है। सद्गुरु के बिना हम मनुष्य अधुरे है।
सदगुरु हमें हंस जैसा बनाते हैं। सदगुरु मार्गदर्शन में ही हम दोषों को त्यागकर सार सार ग्रहण करने के योग्य बनते हैं। सदगुरु हमें सीधा सीधा ईश्वर में स्थापित करा देते हैं। जीव के सच्चे हितैषी सच्चे मार्गदर्शक, सच्चे मित्र केवल सद्गुरु ही हो सकतें हैं। सदगुरु आवश्यक है, सद्गुरु के बिना हम मनुष्य अधुरे है।
“ज्ञानदेव म्हणे तरलों तरलों। आता उद्धरलो सदगुरुकृपे।।”
(संत ज्ञानेश्वरजी)
वे कहते हैं कि भवसागर तरना और जीव का उद्धार केवल गुरुकृपा से ही संभव है।
“जव नाही ज्ञानप्राप्ति, तव चुकेना यातायाती।
गुरुकपेविण अधोगति, गर्भवास चुकेना।।”
(समर्थ रामदासजी)
वे कहते हैं कि जब-तक गुरु नहीं तब-तक आत्मा का ज्ञान नहीं, और जब-तक आत्मा का ज्ञान नहीं तब-तक अधोगति, संसार में, गर्भ में आना-जाना रुकता नहीं।
“ज्याने सदगुरु नाही केला, त्याचा जन्म वाया गेला।”
मनुष्य जीवन अनमोल है, पर सदगुरु के बिना निरर्थक भी है। जो पुर्ण गुरु को जानता है, मानता है, उन्हें सुनता है और उनके उपदेश को अपने भीतर उतारता है। वह सब जानता है, वह पूर्ण गुरु का शिष्य पुर्णता की ओर बढ़ रहा है और एक दिन आवश्य ही पूर्णता को प्राप्त कर लेगा।
धन्यवाद!