नहीं! प्राण और आत्मा दोनों एक नहीं है। प्राण और आत्मा दोनों बिल्कुल अलग है। प्राण वायुतत्व है, वायुतत्व को प्राण कहते हैं। और आत्मा जो है प्राण से भी परे है।
प्राण वायुतत्व है, प्राण जैविक तत्व हैं, प्राण हमारे सारे शरीर के चलन- वलन का आधार है। प्राण एक नही, बल्कि हमारे शरीर मे पूरे पांच प्राण विद्यमान होते हैं, और उन्हें ही हम पंच प्राण कहते हैं।
हमारे शरीर में पंच प्राण अलग-अलग जगहों पर अपना अलग-अलग कार्य करते हैं। प्राण आत्मा जैसे भासते हैं, पर आत्मा नहीं है, प्राण आत्मा की शक्ति है।
आत्मा के अधिपत्य में प्राणों के कार्य चलते हैं, और प्राणों के माध्यम से सारे शरीर के कार्य चलते हैं।
प्राण आतें जाते रहते हैं, लेकिन आत्मा कही भी, कभी भी आतीं जाती नहीं।
आत्मा आकाश जैसी स्थिर है, अचल है, अविनाशी है, अछूती है। आत्मा कही भी आतीं जाती नहीं। और प्राण जो है, अस्थिर है, प्राणों का स्पर्श होता है, शरीर के मृत्यु के बाद प्राणों का नाश होता है, लेकिन आत्मा का नहीं।
प्राण यानी वायु, वायुतत्व को प्राण कहते हैं।
प्राण यानी आत्मा की एनर्जी। आत्मा यानी न आने जाने वाला तत्व। भीतर का अछूता, केवल साक्षी चेतन आत्मा है।
आत्मा स्थिर है, लेकिन आत्मा प्राणों के जरिए कार्य करती है। प्राण हमारे हनुमानजी है और आत्मा रामजी है ऐसा समझों।
पंच महा भूतों से, पंच तत्वों से शरीर बना है, इनमें से वायुतत्व प्राण है, पर आत्मा इन पांचों तत्वों से परे है, आत्मा को छटा तत्व भी कहते हैं।
सबका मूल कारण आत्मा ही होता है, और आत्मा कुछ नहीं करती। आत्मा केवल है, आत्मा के केवल अस्तित्व में सभी कार्य होते हैं। प्राण आत्मा की एक शक्ति है, आत्मा के कारण प्राणों को गति मिलती है, लेकिन प्राण आत्मा नहीं है।
प्राण गतिमान है, आत्मा स्थिर है।
प्राण आतें जाते हैं, आत्मा कही आती जाती नहीं।
जो आता जाता है, वह आत्मा नहीं होता।
आत्मा के कारण प्राण चलते हैं, प्राणों के न होते भी आत्मा का अस्तित्व कायम रहता है।
शरीर के मृत्यु के बाद प्राण नहीं रहते पर आत्मा तब भी मौजूद रहतीं हैं। शरीर के मृत्यु के बाद प्राण नष्ट होते हैं, आत्मा नष्ट नहीं होती।
आत्मा और प्राण दोनों बिल्कुल अलग है। अछूती अकर्ती आत्मा में प्राणों सहित सभी क्रियाएं होती है, लेकिन आत्मा सब करते हुए भी कुछ भी नहीं करती। जैसे सुर्य के प्रकाश में जगत के सब कार्य होते रहते हैं, फ़ूल खुलते है, वनस्पतियां अन्न बनातीं है, लेकिन वास्तव में सूर्य कुछ भी नहीं करता। ठीक वैसे से आत्मा के अस्तित्व में सब कार्य होते हैं, आत्मा कुछ भी नहीं करती।
प्राण निर्विकल्प, निराकार आत्मा चेतना की एक शक्ति है बस।
देखो जब हम अजंपा-जाप करते हैं, तब जो हमें जीवित रख रहा है, जो हमारे शरीर के नथुनों से भीतर बाहर आता जाता रह रहा है वह प्राण है। और उन प्राणों को नथुनों से भीतर बाहर आता जाता हुआ, जो देख रहा है, जो उनका साक्षी है, वह आत्मा है।
आत्मा अकर्ता अविनाशी है, प्राण कार्य कर रहें हैं।
धन्यवाद!