कुछ लोगों के जीवन में दुःख और तक़लिफे कुछ ज्यादा होती है, क्योंकि उन्होंने वैसे ही, दुःख और तक़लिफे पैदा करने वाले बीज बोये हुए होते हैं।
कुछ लोग बहुत नकारात्मक होते हैं, दुःख और तक़लिफों को आकर्षित करतें रहते हैं।
दुःखों और चिंता के पिछे, तक़लिफों के पिछे एक बहुत बड़ा साइंस होता है।
कुछ दुःख तक़लिफे कर्म-बंधनो के कारण आतें हैं, कुछ हमने जो दिया वहीं हमे वापिस आकर मिलता है। और कुछ दुःख और उलझने हमने खुद पैदा कि हुईं होती है।
संत तुकाराम महाराज जी कहते हैं,
ठेवीले अनंते तैसेचि रहावे,
चित्ती असो द्यावे समाधान ।
मतलब जैसे भगवान रखता है, वैसे ही परिस्थिति में समाधान से रहो। तब तुम्हें कोई दुःख नहीं होगा। लेकिन इंसान हैं ना चुप नहीं बैठता। उसे लगता है, भगवान ने कुछ ग़लती की है। इंसान भगवान की उस ग़लती को सुधारने निकलता है और इसी से और ज्यादा दुःखी होता है।
इंसान दुसरो को दुःख देता है, लेकिन खुद दुःख नहीं चाहता। कर्म सिद्धांत का नियम जो करो सो भरो का है। इंसान ऐसा है पहाड़ों जितना दुःख दुसरो को देता है, लेकिन अगर राई जितना भी दुःख उसे होता है, तो उसका रोना रोते बैठता।
मनुष्य को कोई दुःख नहीं है। मनुष्य को मनुष्य चोला, हाथ पैर उंगलियां देकर बहुत बड़ा उपकार किया है भगवान ने। हमने गाय के मुह को काटे चुभते हुए देखा है। क्योंकि हाथ नहीं है, उंगलियां नहीं है उसके पास।
मनुष्य को फटी गुदड़ी और कम-से-कम काली चाय तो मिल ही सकतीं हैं, लेकिन अन्य जीवों को छिपने के लिए जगह और कपड़ा भी नहीं होता।
मनुष्य को कोई दुःख नहीं है, मनुष्यों के दुःख बहुत ही छोटे दुःख है। और जो है, वे खुद उसने पैदा किए हुए हैं। कुछ कर्मों के जरिए कुछ बेवकूफीया और कुछ होशियारी के जरिए।
मेरे पहचान में एक अच्छी खासी पढ़ी लिखी महिला रहती है। उसके घर में हर हफ्ते में लगभग दो बार मांस पकता है। संडे को चाहिए। सोमवार के दिन उनका उपवास रहता है। मंगलवार को चाहिए। और फिर शनिवार को हनुमानजी के दर्शन करने जाते हैं वें लोग।
कोरोना काल में उसकी मां को कोरोना हुआ। इतनी भगवान को गालियां दे रही थी वह महिला। मतलब वह दुसरो को मारकर खाएं चलेगा लेकिन उन्हें परमात्मा की तरफ से कोई दुःख नहीं चाहिए।
कर्म सिद्धांत कहता है कि, तुमने दुसरो को मारा, सौ बार तुम्हें माफ़ किया जाएगा लेकिन एक-सौ एक वी बार इट का जबाब पत्थर से दिया जाएगा।
दुःख बेवजह नहीं आतें, बेवजह कोई किसी को दुःख नहीं देता। कभी कभी दुःख अपनी होशियारी, बेवकूफी और भगवान के रुल्स को न मानने के कारण आतें हैं। और उनके ज़िम्मेदार हम खुद होते हैं।
गरीबी का सबसे मुख्य कारण होता है, कभी भी किसी को भी दान न देना और दुसरो का बहुत ज्यादा खाना। जो लोग बहुत ज्यादा दुसरो का फोकट का अन्न खाते हैं, वे भविष्य में गरीब होते हैं।
कुछ लोग केवल लेना जानते हैं, लेकिन देने के समय उनका दिल बहुत छोटा हो जाता है। गरीबी के बहुत से कारणों से आतीं हैं।
निगुरे लोग जल्दी ही गरीब हो जातें हैं, लक्ष्मी उनके यहां से रुठ जाती है।
निर्दयी लोग लोगों के शाप लेते रहते हैं, और इसी कारण जल्द ही एखाद बड़ी बिमारी या किसी हादसे का शिकार होते हैं। साथ में पैसा यानी मां लक्ष्मी भी चलीं जाती है।
निर्दयी, कामी क्रोधी लोगों के पास लक्ष्मी नहीं रहतीं, कुछ ही दिनों में धीरे-धीरे चली जाती है। और कुछ दिनों में दुःख तक़लिफे लड़ाई झगडे उस जगह रहने चले जातें हैं।
व्यभिचारी और व्यसनी लोगों के पास भी ज्यादा समय लक्ष्मी नहीं रहतीं। शाप देकर चलीं जाती है।
मनुष्य की शादी होने के बाद, एक गृहस्थी को उसे पंच महायज्ञ करना ही करना है। पंच महायज्ञ करने से पाप कटते हैं, बरकत बढ़ती हैं।
एक महिला है, उसके पास पच्चीस एकड़ जमीन थी। लेकिन जब-तक जमीन थी उसने कभी भी किसी को दो किलो तक अनाज नहीं दिया। कभी उनके घर संत आते नहीं देखें। कभी लंगर सेवा नहीं की। अब धीरे-धीरे भगवान ने छीन लिया सब। अब भगवान को गालियां देते हैं।
जब हमारे पास कुछ है, तो उसमें से पांच टका हमारा नहीं होता। जो लोग अपनी कमाई का पांचवां हिस्सा सत्कार्यों में खर्च करते हैं वहा बरकत होती है।
कमाई का पांचवां हिस्सा सत्कार्यों में, सुपात्र खर्च करों। कहीं भी करों पर करो, ऐसे लोगों को धन की कमी नहीं पड़ती। बाकी लोगों का, बाकी जगहों का धीरे-धीरे करके वापिस लिया जाता है।
धन्यवाद !