तपस्या में या साधना में एकांतवास, अंतर्मुखता की अत्यंत आवश्यकता होती है।
तपस्या में, ईश्वर प्राप्ति में जो भी चीजें बाधक हो उनका सर्वथा त्याग आवश्यक होता है।
अच्छी तपस्या में हम तन से, मन से, विचार और वाणी से जो भी करें, उसमें हमारा केवल एक भगवत प्राप्ति का ही भाव होना चाहिए।
अच्छी तपस्या के लिए, हम जो भी साधना कर रहे हैं, उस साधना में सफलता के लिए जितना हो सके सत्संग, सत्पुरुषों का संग आवश्यक है।
परमात्मा के नाम का, सदगुरु प्रदत्त नाम का प्रेम-भाव पुर्वक मनोमन जाप-सुमिरन आवश्यक है।
निश्काम भाव से लोगों की सेवा करना भी एक तपस्या होती है।
अपना कल्याण चाहने वाला हमेशा दुसरो का कल्याण करता रहता है।
अच्छी तपस्या के लिए अपना आचरण व्यवहार पवित्र हो।
अपना मन और तन पवित्र रखने का प्रयास हो।
अपने भीतर इसतरह का विवेक जगा हुआ हो की, इस जगत में केवल एक आत्मा अविनाशी है, और शरीर सहित समस्त जड़ जगत विनाशी है।
अच्छी साधना करने वाले, सच्ची तपस्या करने वाले लोग अपने जीवन में केवल ईश्वर को, अपने सद्गुरु को महत्व देते हैं।
वे केवल ईश्वर संबंधित बातें करते हैं।
वे अपनी जीवन शक्ति की रक्षा करतें हैं।
अच्ची और सच्ची तपस्या करने वाले लोग अपने जीवन में ब्रह्मचर्य का कठोर पालन करते हैं।
सात्विक आहार, स्वच्छ सात्विक वातावरण में रहते हैं।
वे अपने जीवन में समता और नम्रता को अपनाते हैं।
जीवन में अच्छी और सच्ची तपस्या करने वाले लोग विषयी, बहिर्मुखी लोगों से दोस्ती नहीं करते।
वे अपना समय व्यर्थ में नहीं गंवाते।
जीवन में अच्छी और सच्ची तपस्या करने वाले लोग एक परमात्मा के सीवा और किसी में भी आसक्ति नहीं रखतें।
ह्रदय का सर्वोच्च स्थान परमात्मा को देना सच्ची तपस्या है।
प्रेम करों तो परमात्मा से करों।
तु ही तु, सब जगहों में तु ही तु,
मेरे लिए सर्वोपरि तु, मेरा हंसना और रोना भी तु। मेरा सुख और दुःख भी तु।
तेरे लिए जीना तेरे लिए ही मरना।
जीवन का एक ही लक्ष्य है, तेरी प्राप्ति।
परमात्मा से इसतरह का प्रेम करना, परमात्मा के लिए सच्ची तपस्या है।
परमात्मा से, गुरुचरणों से प्रेम भक्ति भाव बढ़ने के लिए, संतों के चरित्रो का, गुरुतत्व के चरित्रो का पठन, श्रवण-मनन करें।
जो भी मिले, जिसके भी साथ कभी बात करने का अवसर मिले तो परमात्मा की ही बातें करें।
जीवन में अच्छी तपस्या के लिए, साधना में आगे बढ़ने के लिए ब्रम्हमुहूर्त में उठना आवश्यक है।
परमात्मा का नाम चिंतन करना, ध्यान-धारणा करना आवश्यक है।
अपने साक्षीभाव में आना और साक्षीभाव में जीना आवश्यक है।
मान-पान सुख-दुख में समता बनाएं रखना आवश्यक है।
अपने शरीर पर कष्ट उठाकर दुसरो के लिए कुछ अच्छा करना आवश्यक है।
अच्ची और सच्ची साधना में, तपस्या में सदैव कायिक वाचिक मानसिक अहिंसा का पालन होता है।
तपस्वी मतलब महान आत्मा।
तपस्या करने के लिए प्रयास करना मतलब महान आत्मा बनने के लिए प्रयास करना।
तपस्वी मतलब संसार की ओर पीठ और परमात्मा की ओर मुख किया हुआ व्यक्ति। तपस्वी अपने प्रियतम परमात्मा की प्राप्ति के लिए बाह्य सब आकर्षणों को त्याग देता है।
महान आत्मा बनने के लिए, महान तपस्वी बनने के लिए जीवन में सत्यव्रत का अनुसरण करना, सत्य भाषण करना आवश्यक है।
तपस्या करना मतलब आसक्तियों को हटाना। तपस्वी मतलब सभी स्वार्थों से ऊपर उठा हुआ व्यक्ति।
निरंतर भगवत्ता की अनुभूति में रहने वाले व्यक्ति को तपस्वी कहते हैं।
काम और कामनाओं से रहित व्यक्ति सच्चा तपस्वी होता है।
जिसने अपने मन इंद्रियों को अपने भलाई में लगाया है वह सच्चा तपस्वी हैं।
ईश्वर के साथ संबंध स्थापित करने की तैयारी तपस्या है।
अपने आत्मा के साथ रहना तपस्या है। आसक्तियों को ज्ञान और परमात्मा की तरफ़ मोड़ देना तपस्या है।
अपने प्राणप्रिय सदगुरु की अनन्य भक्ति परम तपस्या है।
जिस किसी चीज से भी मन की चंचलता नष्ट होती हो, वह सब करना तपस्या करना है।
मन की चंचलता को समाप्त करने की सभी साधनाएं तपस्या है।
स्वयं के और दुसरो के प्रति भी ईमानदार होना तपस्या है।
जो जन्मता और मरता नहीं, ऐसे अपने “मैं कौन हूं” की अनुभूति में रहना परम् तपस्या है।
अपने मन इन्द्रियों को वश में करने के लिए, चित्त की शुद्धि के लिए, विषयों से निवृत्ति के लिए की जाने वाली साधना को तपस्या कहते हैं।
ब्रह्मचर्य, अहिंसा शारीरिक तप है।
प्रीय व सत्य भाषण वाचिक तप है।
मौन मानसिक तप होता है।
सच्ची और अच्छी तपस्या के लिए मल मुत्र का थैला शरीर मै नहीं, पंचभूतों का संघ मैं नहीं, मैं निराकार चेतन ब्रह्म हूं का निरंतर अभ्यास आवश्यक है।
अच्छी तपस्या के लिए संसार के भौगो के प्रति त्याग और ईश्वर में आसक्ति आवश्यक है।
ईश्वर प्राप्ति के लिए अपने मन इंद्रियों का संयम, सदाचारी जीवन और स्वअनुशासन आवश्यक है।
धन्यवाद!