ज़ी बिल्कुल! जीवन में कुछ भी अकारण नहीं होता। समस्त संसार में जो भी हों रहा है, इसके पीछे अनेकों कारण होते है। यहां जो भी होता है, सब न्यायसंगत होता है।
परमात्मा के दुनिया के कानून, नियम अलग होते हैं, और लौकिक दुनिया के बिल्कुल अलग।
परमात्मा के, सर्वेश्वर के नियमों में और संसार के नियमों में बहुत फर्क होता है। परमात्मा के नियमों से जो भी सुख या दुःख, अनुकूलता या प्रतिकूलता भुगत रहा है, सब उसी की, भुगतने वाले की ही ग़लती है, उसी की भूल है।
एक एक व्यक्ति एक ही समय में अनेकों अदृश्य कारणों से बंधा हुआ होता है, कुछ कर्म पक कर फ़ल देने को तैयार होते हैं, और फिर उस कर्मफ़ल के हिसाब से वैसी परिस्थितियां वैसा माहौल उसके जीवन में बनता जाता है। यहां कुछ भी अकारण नहीं होता।
समस्त संसार में जो भी हो रहा है, यह सब हिसाब किताब ही चल रहा है। हिसाब किताब का नाम ही संसार है। हिसाब किताब के कारण हम संसार में हैं और उसे भुगतकर पूरा कर रहे हैं। जब हमारे सारे हिसाब किताब पूरे होते हैं, तब संसार में जन्म लेने का कोई कारण नहीं होता, तब संसार में आना-जाना नहीं होता।
हमे जीवन में जो दुःख या सुख भुगतान पड़ता है, उसमें हमारा ही दोष है, यहां तक की हमारे जन्म और मृत्यु भी इन दोषों के कारण ही हो रहे हैं। हम अगर निर्दोष होते तो अब-तक कब का मुक्त हुए होते। फिर भी परमात्मा की बहुत दया या पिछले जीवन में हमारे बहुत से शुभ कर्म रहे, और इसलिए आज़ हम मनुष्य शरीर में है।
मनुष्य शरीर परमात्मा की तरफ से मिला हुआ एक बहुत सुंदर उपहार होता है। मनुष्य जीवन में हमे अपनी ख़ुद की गलतियां दिखतीं नहीं, इसलिए परमात्मा ने मनुष्यों के लिए गुरु परंपरा की व्यवस्था की है। अगर मनुष्य जीवन है, तो मनुष्य जीवन में एक सच्चे आत्मज्ञानी महापुरुष सदगुरु का होना आवश्यक होता है।
सदगुरु के जीवन में आते ही सबसे पहले धीरे-धीरे हमे अपनी ग़लतीया दिखने लगतीं हैं। सुख-दुःख की जड़, सुख-दुख के कारण समझ में आने लगते हैं। हमे साफ़ समझ आता है की, जो आज़ हमे भुगतना पड़ रहा है, वह हमारी अपनी कमाई है। वह हमसे भूतकाल में हुई भूले हैं। भूतकाल में की हुई भूलों का, अच्छाई का या बुराई का परिणाम है।
धन्यवाद!