आत्मा सत और असत से परे है कैसे?

आत्मा सत्य है, लेकिन सत और असत से भी परे है। क्योंकि आत्मा केवल चैतन्य है, आत्मा केवल बोध स्वरुप है, आकाश जैसा सर्वव्यापक और भीतर का जाननेवाला है।

भीतर का शुद्ध मैं, जाननेवाला आत्मा हैं। आत्मा का शरीर, मन और भावनाओं से कोई संबंध नहीं।

शरीर पहले नहीं था, बाद में भी नहीं रहेगा। मन और भावनाएं पहले नहीं थी, बाद में भी नहीं रहेंगी। आत्मा सत्य है। आत्मा मानसिकता और भौतिकता से परे है।

आत्मा सभी बंधनों से मुक्त, सभी सीमाओं से परे है। उसके लिए को कोई काल, त्रिकाल नहीं। वह बस आकाश तत्व जैसा हैं, आकाश के भीतर है, लेकिन आकाश भी नहीं है, वह छठा तत्व है, उसी को कृष्ण कहते हैं।

उसके लिए कोई शुरुआत और अंत नहीं है। उसके लिए कोई समय नहीं है। वह कालातीत है, आत्मा के लिए दिन और रात नहीं होते। वह शाश्वत है, स्वयं प्रकट है, स्वयं में पूर्ण है। इसलिए आत्मा सत और असत से परे है ऐसा कहते, जो कि सत्य है।
आत्मा जड़ तत्त्व नहीं है, अभौतिक है, सत और असत से परे है।
धन्यवाद।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *