
हां जी। धरती पर आज़ भी बहुत से सच्चे संत जीवित है। मेरे सद्गुरु श्रीपरमहंस दाता दयालु जी उनमें से एक है। मैं उनके श्रीचरणों में कोटी कोटी नमन करता हूं। उन्हे हरपल अपने ह्रदय में धारण करता हूं। अब तो वे ही वे है, मैं नहीं।
आज़ भी धरती पर सदा कोई न कोई ईश्वर स्वरुप महापुरुष विद्यमान रहते ही हैं। ईश्वर ने सृष्टि का निर्माण किया और फिर सृष्टि के सृजनकर्ता ईश्वर सगुण रूप में सच्चे संतों महापुरुषों के रुप में अवतरित होते रहते हैं।
सदा रहते हैं, बस हम उन्हें नहीं जानते। और जानते भी है तो पहचानते नहीं, महापुरुषों को ज्ञान दृष्टि से पहचाना जाता है। केवल चमडे के आंखों से हम उन्हें नहीं पहचान सकते।

महापुरुषों को पहचानने के लिए, उनके सानिध्य के लिए सबसे पहले तो बहुत बड़ा पुण्य संचय चाहिए और ढेरों लोगों के शुभ आशिर्वाद। खुद रोते हुए भी शेकडो लोगों को हंसाना पड़ता है, अनेकों के चेहरे की मुस्कान बनना पड़ता है, तब कहीं उनका सान्निध्य प्राप्त होता है, तब कहीं उनके प्रेम के हम काबिल बनते हैं। तब कहीं उनकी सेवा का हमें मौका मिलता है।
सच्चे संतों की महापुरुषों की पहचान केवल कपड़ों और मालाओं से नहीं होती। सच्चे संतों को पहचानना और उनके साथ टिकें, बनें रहना बड़ा ही कठिन काम है।
कुछ सच्चे संत महापुरुष लोगों में अपने को प्रगट ही नहीं होने देतें। लेकिन चुपचाप अपना कार्य करते रहते हैं। कुछ एखाद जगदकल्यान हेतु, धर्म कार्य हेतु लोगों के बीच में आ जाते हैं। लगभग उन्हें एकांत ज्यादा पसंद होता है।

अवधूतों के स्वामी भगवान दत्तात्रेय जी सदा धरती पर विद्यमान है, लेकिन कोई जानता है?
नहीं जानता। जानता है तो पहचानता नहीं।
आजकल कलियुग कि महिमा है, गली गली में संत हैं। वह ठिक है, लेकिन सच्चे संत पुरी दुनिया में दस बारह ही होते हैं। और यह हर सौ साल में आते रहते हैं। मेरे परमहंस गुरुदेव एक सच्चे संत हैं। जगद कल्यान हेतु धरती पर आएं हुए है।
ऐसी बहुत सी, अनेकों दिव्य आत्माएं, मुक्त आत्माएं है, छे सौ, सात सौ साल मुक्त अवस्था में रहकर फिर से धरती पर अवतरित होती हैं। मनुष्य बनकर, मनुष्यों जैसा व्यवहार करते हैं। लेकिन मनुष्य नहीं होते। उनके सभी व्यवहार दिव्य होते हैं।

विश्व नाटककार परमात्मा बहुरुपिया है। वे कब कहां प्रकट होंगे पता नहीं चलता।
कल परसों ही हम एक दिव्य विभूति के दर्शनों के लिए गये थे। उनके स्वरुप में हमने साक्षात प्रभू के दर्शन हुए। उनके श्रीमुख को देखकर ऐसा लग रहा था कि साक्षात ठाकुर जी विद्यमान है। उनका व्यवहार भी बड़ा दिव्य। पेशे से वे एक डॉक्टर है लेकिन परमहंस अवस्था में चले गए हैं। अस्तित्व में, परमात्मा में विलीन अवस्था है।
मेरे परमहंस गुरुदेव सहित आज़ भी धरती पर ऐसे बहुत से सच्चे संत महापुरुष हैं, जिनके भीतर से परमात्मा सीधे सीधे बह रहे है। लेकिन पहचानने के लिए भी गुरुकृपा चाहिए।
धन्यवाद।