
जीवन का मुख्य उद्देश्य अपनी आत्मा का कल्याण होना चाहिए, उससे कम नही। यह भीतर की यात्रा है, जबकि सांसारिक उन्नति बाहर की यात्रा है। बाहर से भी मनुष्य को परिपूर्ण जीवन जीना चाहिए और उससे ज्यादा भीतर की पूर्णता की प्राप्ति का पूरा प्रयास होना चाहिए।
आत्मज्ञान की प्राप्ति यानी खुद को जान लेना कि मैं ही परमात्मा हूं, उससे अलग नही। अपनी क्षुद्रता को विशाल परमात्मा के अस्तित्व में विलीन कर देना, यही हमारा महानतम लक्ष्य है।
मैं कौन हूं? मेरा जन्म क्यों हुआ है? इन सब सवालों के जवाब में ही सत्य छुपा है, जो शिव स्वरूप और सुंदर है। वही अपने सद्चिदानंद रूप में स्थिर होना हमारा परम लक्ष्य है।
इसे पाने का सबसे सरल माध्यम खुद सरल हो जाना है, एक भोले बच्चे की तरह, जो पूरी तरह अपने माता पिता पर निर्भर होता है। वैसे ही हम भी निश्छल और भोले बन जाएं, तो परमात्मा हर ओर मुस्कुराता दिखाई पड़ता है।
इसके प्रेम में पड़ जाना, उसे अपना सब कुछ समझ के उसके आगे समर्पित हो जाना ही उसे पाने की सच्ची राह है। शुद्ध हृदय, मानवीय गुणों से युक्त जीवन, परमात्मा के प्रति सच्ची लगन और विश्वास के साथ समर्पण, सत्कर्म, सेवा, सिमरन ये सब आसानी से हमे अपने इस परम लक्ष्य की प्राप्ति करा देते हैं।