गुरुपूर्णिमा एक साधक के लिए बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह शिष्य को याद दिलाता है की उसे भी इसी तरह पूर्ण होना है। उसके गुरु पूर्ण परमात्मा का ही रूप हैं तो वह भी उसी पूर्णता प्राप्ति की राह पर ही चल रहा है। इसलिए वह पूर्णिमा के चांद में अपने गुरु को देखता है, जिन्होंने शिष्य के जीवन के सब पाप, ताप हर लिए और उसका जीवन चंद्रमा की तरह ही तरह ही बाहर और भीतर से शीतल कर दिया है। इसके दिव्य रोशनी की किरणों में वह अपने गुरु के प्रेम और आशीर्वाद को महसूस करता है, और उसे दिव्य प्रसाद को ग्रहण करके खुद को कृतार्थ कर लेता है।
गुरुपूर्णिमा उसके सारे अधूरेपन को दूर करके उसे पूर्णता को जाने के लिए प्रेरित करता है, इसलिए ये सबसे सही समय होता है, जब वह मन से पूरी तरह गुरु चरणों में समर्पित हो पाता है।
शिष्य के जीवन को ज्ञान, भक्ति, वैराग्य, प्रेम, सेवा से निहाल कर देते है गुरु, यही कृपा पाने का एक सर्वोत्तम अवसर गुरुपूर्णिमा होता है। यह गुरुपूर्णिमा गुरु के दिए हुए नाम के साथ गुरु में लीन होने का श्रेष्ठ अवसर होता है।