अज्ञान के कारण!
ईश्वर इंसान के अंदर ही है लेकिन वह उसे बाहर खोजता है और खोजता ही रहता है। खोजते खोजते जीवन की शाम हो जाती है लेकिन ईश्वर मिलता नहीं कही।

मिलेगा कैसे! ईश्वर कही बाहर है ही नहीं। आज़ तक जिसने भी पाया सबने अपने अंदर ही पाया। इंसान खुद देवों का देव महादेव हैं। लेकिन वह बाहर महादेव को ढुंढता फीरता है,भटकता रहता है।

इंसान के अंदर की आत्मा, स्वचेतना, स्वस्वरुप सबसे बड़ा ईश्वर हैं। इंसान अपने अज्ञान के कारण, देहबुध्धी के कारण अपने मूल चेतन स्वरूप को भूल गया है।

इंसान खुद ईश्वर है लेकिन अज्ञानता के कारण उसे खुद से यह समझ नहीं आता। उसे इसे समझने के लिए ही सद्गुरु की आवश्यकता होती है। इसे समझने के लिए ही सद्गुरु के पास जाना होता है।

इंसान जब गुरु की शरण में जाता है तब उस की भटकन रुक जाती है। जब तक जीवन में सदगुरु नहीं, तब तक जीवन की शुरुआत ही नहीं होती। जबतक जीवन में सदगुरु नहीं भटकन ज़ारी रहेगी।

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