आध्यात्म अपने भीतर की यात्रा है। जब बाहर की यात्रा करते हैं तो संसार की भागदौड़ में हम उलझ जाते हैं, और फिर भी कुछ हासिल ना होने पर शांति की तलाश में अपने भीतर की ओर मुड़ते हैं, तब जाकर हमारी आध्यात्मिक यात्रा प्रारंभ होती है। और बाहर की असफलता ही हमें भीतर की यात्रा के लिए प्रेरित करती है। तो हमारे पास खुद को जानने का अवसर होता है, और परमात्मा ने कई रास्ते बनाए हैं इसके लिए, जैसे ज्ञान, भक्ति, प्रेम, सेवा, कर्तव्य, जन कल्याण, यम, नियम, जप, तप आदि और भी अनेक रास्ते हैं। क्योंकि हर जीव की आत्मिक उन्नति की अलग अलग अवस्था होती है। कोई पहले चरण पर है तो कोई अंतिम चरण पर। उसकी अवस्था अनुसार ही उसके लिए उचित मार्ग उसे गुरु प्रदान करते हैं।

अब सवाल यह है की ज्ञान और भक्ति दोनो के रास्ते पर क्या एक साथ चला जा सकता है? इसका जवाब हैं हां। हालांकि ज्ञान और भक्ति अलग रास्ते हैं, पर मंजिल एक ही है, परमात्मा की प्राप्ति। ज्ञान संसार और खुद के प्रति वो समझ प्रदान करता है, जिससे हम मजबूत बनते हैं। केवल भक्ति मार्ग पर चलने वाले अत्यधिक भावुक होते हैं, और परिस्थितियों से जल्दी टूट जाते हैं। हालांकि उनकी भक्ति की शक्ति अटूट होती है, पर ज्ञान के अभाव में, संसार में व्यवहारिक रूप से वो हार जाते है। तो हमें रहना तो संसार में ही है, कहां भाग कर जाएंगे? इसलिए ज्ञान हमे संसार में रहने के लिए, लड़ने और विपरीत परिस्थितियों से बचने में सहयोगी होता है। उदाहरण के लिए हमारे शरीर में सिर्फ मांसपेशियां नही हैं, उसे सहारा देने के लिए मजबूत आधार पूरा कंकाल तंत्र भी है, तभी शरीर खड़ा हो सकता है, मजबूती के साथ लचीलापन दोनो आवश्यक है। इसी प्रकार ज्ञान और भक्ति दोनो का सही तालमेल हो तो जीवन इस लोक और परलोक दोनों के लिए संवर जाता है। ज्ञान का सुरक्षा कवच भक्त के कोमल हृदय की रक्षा करता है। भक्ति की कोमलता, ज्ञान को सुंदरता प्रदान करती है। दोनो में एक समानता है कि परमात्मा की प्राप्ति ही अंतिम लक्ष्य है। समर्पण दोनो में अनिवार्य है, बिना समर्पण ना ज्ञान की पूर्णता है, ना भक्ति की। सिर्फ ज्ञान में जीव अहंकारी हो सकता है, और सिर्फ प्रेमी भक्त नाजुक हृदय वाला होता है, वह कभी कभी परमात्मा की आड़ में अकर्मण्य हो जाता है, कि जो करेंगे परमात्मा ही करेंगे। ऐसा बिलकुल नही है, हमें परमात्मा ने कर्म करने धरती पर भेजा है। अपने कर्मो से पुराने कर्मों को क्लियर करने और अच्छे, नेक कार्यों द्वारा संसार की सेवा हमारी जिम्मेदारी है। इससे बच नहीं सकते हम, और यह कर्तव्य निभाने की शक्ति ज्ञान से आती है। भक्ति प्रेरित करती है और ज्ञान कर्म करने की कुशलता प्रदान करती है। अतः समझदार वही है, जिसने दोनो पैरों का सहारा लिया, क्योंकि एक पैर से आप ठीक से चल नही पाएंगे। अध्यात्म की अंतर यात्रा में भी यह दोनो ज्ञान और भक्ति दो साधन हैं, जिससे संसार में रहते हुए परमात्मा को पाया जा सकता है।

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