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सुखी रहने का मंत्र दुःख को त्यागो दुःख से लगाव होना एक रोग है, यह विकृत प्रवृत्ति है. यह प्राकृतिक नहीं है. एक बात याद रखो, मानवता पर रोग हावी रहा है. जो गीत गा सकता है, जो नाच सकता है, वह नाचेगा, गायेगा, उत्सव मनायेगा. लेकिन जो नाच नहीं सकता, वह कोने में पड़ा रहेगा और योजनाएं बनायेगा कि दूसरों पर कैसे हावी हुआ जाये. वह कुटिल बन जायेगा. जो रचनाशील है, वह रचेगा. जो नहीं रच सकता, वह नष्ट करेगा, क्योंकि उसे भी तो दुनिया को दिखाना है कि वह भी है. जो व्यक्ति प्रेम नहीं कर सकता, वह हमेशा नकारात्मकता पर ही जोर | देगा. वह हमेशा तुमसे कहेगा, अगर तुम प्रेम में पड़े तो दु:ख उठाओगे… जब भी तुम दुख का सामना करोगे, तो तुम्हें वह व्यक्ति याद आयेगा कि वह सही कहता था. एक स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है कि मनुष्य रोगों के प्रति ज्यादा सचेत होता है, न कि स्वास्थ्य के प्रति जब तुम स्वस्थ होते हो, तो तुम अपने शरीर को भूल जाते हो. लेकिन, जैसे ही अस्वस्थ होते हो, देह को नहीं भूल पाते. जब तुम प्रेम में होते हो और खुश होते.. | हो तो उसे भूल जाते हो. लेकिन, जब संघर्ष, नफरत और गुस्सा होता है तो तुम उसे बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने लगते हो. दुख के प्रति अपनी आसक्ति त्याग दो. जीवन से प्रेम करो, और अधिक खुश रहो. जब तुम एकदम प्रसन्न होते हो, संभावना तभी होती है, वरना नहीं. दुख तुम्हें बंद कर देता है, सुख तुम्हें खोलता है. दुखी लोग हमेशा कठोर हो जाते हैं. उनकी नरमी खत्म हो जाती है. एक प्रसन्न व्यक्ति फूल की तरह है. उसे ऐसा वरदान मिला हुआ है कि वह सारी दुनिया को आशीर्वाद दे सकता है, खुलने की जुर्रत कर सकता है. पूरी प्रकृति उसकी मित्र है. वह क्यों डरने लगा ? वह खुल सकता है. वह इस अस्तित्व का आतिथेय बन सकता है. वही वह क्षण होता है जब दिव्यता तुममें प्रवेश करती है. केवल उसी क्षण प्रकाश तुममें प्रवेश करता है, और तुम बुद्धत्व प्राप्त करते हो.
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शालिनी साही
सेल्फ अवेकनिंग मिशन