यह सम्पूर्ण ब्रह्मांड उस निराकार परमात्मा का ही साकार रूप है, उससे अलग नही। परमात्मा ने सृष्टि बनाई और खुद ही इनके भीतर छुप गया। इसलिए जब हम सबके भीतर वही सूक्ष्म रूप में समाए हुए हैं, इसलिए आत्मा को परमात्मा का अंश कहा गया है।

कबीर जी ने बहुत अच्छी बात कही है–
कबीर खोजी हरि का गया जु सिंघल द्वीप। साहिब तो घट मे बसै जो आबै परतीत।।

कबीर कहते हैं कि मैं ईश्वर को ढूढ़ने के लिए श्रीलंका द्वीप तक गया, किंतु नही मिले और वो तो मुझे मेरे भीतर में ही मिल गए। यदि तुम्हें भरोसा हो तो अपने भीतर देखो, तुम उसे पा ही लोगे।

घट बिन कहूॅं ना देखिये हरि रहा भरपूर। जिन जाना तिन पास है दूर कहा उन दूर।।

आत्मा परमात्मा का ही अंश है क्योंकि– हर घट अर्थात हर शरीर, में परमात्मा पूर्णता से समाए हुए हैं। कोई शरीर उनसे रिक्त नही है। इस सत्य को जिसने जन लिया, वही ज्ञानी है, उसी के पास ही ईश्वर हैं और जो उन्हें दूर मानता है, भगवान उससे बहुत दूर हैं।

ज्यों पाथर मे आग है, त्यों घट मे करतार। जो चाहो दीदार को, चकमक होके जार।।

हम परमात्मा का अंश वैसे ही हैं जैसे: चकमक पत्थर के भीतर आग छिपी होती है। यदि तुम परमात्मा को देखना चाहते हो तो ज्ञान के आग में मन और माया को जलाओं।

जैसे तरुबर बीज मह, बीज तरुबर माहि। कहे कबीर बिचारि के, जग ब्रहम के माहि।।
अर्थात जिस प्रकार बीज के भीतर ही सुषुप्त अवस्था में विशालकाय वृक्ष छिपा होता है, पर वह प्रत्यक्ष दिखाई नही देता, उसी प्रकार वृक्ष में भी अनेकों बीज छिपे होते हैं। जो प्रकृति के नियमों से समय आने पर प्राप्त होते हैं।

उसी प्रकार हम जीवात्मा में परमात्मा ऐसे ही छुपा हुआ है, और पिता से उत्पन्न पुत्र उसी का अंश होता है, इसलिए आत्मा भी परमात्मा का अंश कही जाती है।

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