अध्यात्म यानी अपने भीतर की यात्रा, और संसार यानी बाहर की यात्रा। जब हम बाहर की यात्रा करते हैं, तो सबकुछ दिखाई देता है, कहां जाना है? कैसे जाना है? कोई ना कोई मार्गदर्शक भी मिल जाता है। लेकिन भीतर की यात्रा बड़ी कठिन है, क्योंकि भीतर की यात्रा के लिए जब हम आंख बंद करते हैं तो सिर्फ और सिर्फ अंधेरा ही दिखाई देता है। ना कोई रास्ता, ना रोशनी, फिर कैसे भीतर की ओर आगे बढ़ा जाए। तो इसके लिए परमात्मा ने बहुत सुंदर व्यवस्था की है, मार्गदर्शक के रूप में सतगुरु होते हैं, जो अपने ज्ञान की रोशनी से हमे रास्ता दिखाते है, और हाथ पकड़ कर ले चलते हैं। बड़ा दयालु है परमात्मा, इसलिए खुद सतगुरु रूप में हमारा कल्याण करने आते हैं, कि मेरे बच्चे कहीं भटक ना जाए।
लेकिन इतना आसान नहीं है गुरु की कृपा को पाना, उसके लिए पहले अपनी योग्यता और पात्रता सिद्ध करनी होती है। वो परमात्मा से हमें मिलाए उससे पहले, हमें उनके लायक बनाते हैं, ठोक पिट कर तो कभी प्यार से। और इसलिए वो हमें नियमों की आग में तपाते हैं, ताकि हम मजबूत बन सकें। हम कमजोर ना हो जाएं, क्योंकि इस राह में वही टिक सकता है, जिसके भीतर प्रभु प्रेम के लिए मर मिटने की लगन लगी हो। वही लगन पैदा करने के लिए हमें नियमों में बांधा जाता है। एक कच्चे घड़े को जितना तपाया जाता है, वह उतना ही मजबूत बनता हैं। इसलिए सतगुरु हमें नियमों की आग में झोंक देते हैं ताकि हम पक्के घड़े बनकर तैयार हो सकें। परिस्थितियों के झोंको से कहीं बिखर ना जाएं, इसलिए नियमों की कसौटी पर हमें कसा जाता है।
अतः जब हम भीतर की यात्रा करते हैं तो यही नियम हमारा मार्गदर्शन करते हैं, क्योंकि इसी रास्ते से अनेक बुद्ध गुजर चुके हैं, और अपने पदचिन्ह, नियमों के रूप में दिए हैं, ताकि हम भी उसका अनुसरण कर आगे बढ़ सकें। तो जैसे एक छोटे बच्चे के लिए स्कूल में अनुशासन लागू किया जाता है, जिससे उसके आने वाले भविष्य का नक्शा तैयार हो जाता है। उसी नियम और अनुशासन से बच्चे का जीवन दृढ़ और मजबूत बनता है, और अपने लक्ष्य को वह प्राप्त कर लेता है। इसलिए गुरु के अनुशासन में हमें खुद को सौंप देना चाहिए, बाकी सारी जिम्मेदारी उसकी हो जाती है, फिर हमें और कुछ सोचने की आवश्यकता नहीं रह जाती, वो बड़े प्रेम से हमे वो दे देते हैं, जो हमारी कल्पना से भी बाहर है। उसे हम और दे भी क्या सकते हैं, उन्होंने हमारे योग्य जो नियम बताए हैं, उनका पालन करें, इसी में उनको बहुत खुशी होगी। और आध्यात्म के रास्ते पर चलने वालों के लिए नियम मिल के पत्थर की तरह है, जो हमें बताता है कि हमारी स्थिति और योग्यता कहां तक पहुंची है। अतः गुरु पर पुर्ण विश्वास के साथ समर्पण के साथ आगे भी और नियमों की पालना करें , निश्चित ही कल्याण होगा।