हमारा धर्म, इसका धर्म, उसका धर्म यह सब उपरी उपरी बातें हैं। अज्ञानी लोग जिन्हें धर्म कहते हैं वह सब संप्रदाय या अलग-अलग पंथ होते हैं।
असल में हम सबका, सभी मनुष्य जाति का धर्म एक ही है और वह है सनातन धर्म। जो सत्य से, आत्मा से, स्वयं से रिलेटेड है, जो कभी भी बदली करने पर भी बदली नहीं होता।
किसी विशिष्ट प्रकार के कपड़े पहनना या कुछ विधी करना धर्म नहीं होता।
*हर मनुष्य के लिए स्वयं की खोज करना सबसे पहला धर्म है।*
सत्य, न्याय, अहिंसा, कर्तव्यों का पालन करना, जहां भी रहो सदाचार से जीवन जीना धर्म होता है। न्याय निती-नियम सम्मत श्रेष्ठ आचरण व्यवहार को धर्म कहते हैं।
इस धर्म से उस धर्म में जुड़ना या उस धर्म से इस धर्म से जुड़ना यह सब अज्ञानता भरी बातें हैं। अज्ञानता के कारण होती है, धर्म को बदली करने वाले धर्म को नहीं जानते इसलिए ऐसी हरकतें करते हैं।
स्वयं की खोज को प्राथमिकता दो। और यह नियम सभी मानव देहधारियों के लिए है, इसमें जात-पात, लिंगभेद कोई भेदभाव नहीं होता।
अपने अंदर मानवता, प्रेम भरना और स्वयं की खोज करना ही सबसे पहला धर्म है। अपने अज्ञान का नाश करना, अपने विवेक को जगाना इंसान का सबसे पहला धर्म है। इंसान बनकर अगर इस धर्म का पालन नहीं किया, उपर उपर की बातों में ही घुमते रहे तो फिर प्रकृति से मार पड़ेगी और कार्मिक क्या होंगे? तो अटकन और भटकन होगी और क्या। जीस काम के लिए मनुष्य जीवन मिला था वह छीना जाएगा और क्या।