अहंकार अज्ञान के कारण पैदा होता है। क्योंकि अहंकार अज्ञान का एक हिस्सा है, अहंकार एक असमझ है। अहंकार ज्ञान, सारा-सार विवेक और समझ का अभाव है। अहंकार अविवेक है। जब भीतर ज्ञान-विवेक का उदय होता है तो अहंकार ग़ायब हो जाता है।

अहंकार के कारण ही यह सारा संसार खड़ा है। अहंकार के कारण ही जन्म और मृत्यु है। मनुष्य के भीतर की आत्मा नहीं, अहंकार ही जन्मता और मरता है। जब-तक आत्मज्ञान नहीं होता, इस अहंकार का अस्तित्व कायम रहता है।

जब-तक आप अपने स्वयं के स्वरूप को, अपने “मैं कौन हूं” को पुर्ण रुप से नहीं जानते इस अहंकार का अस्तित्व कायम रहता है। लेकिन जैसे ही तुम्हें अपने “मैं कौन हूं” का पता लग जाता है इस अहंकार का नामोनिशान मिट जाता है। तब तुम तों होते हो, पर अहंकार नहीं होता।

मैं यह हूं, मैं वह हूं, मैं ऐसा, मैं वैसा यह अहंकार है। और जब भीतर का सच्चा मैं प्रकट होता है तो यह बाहरी झुठा मैं, यह अहंकार चुप हो जाता है।

आत्मज्ञान -आत्मबोध नामक दवा से अहंकार अपनी आप हटता है। अहंकार को हटाने के लिए आत्मज्ञान का अभ्यास किया जाएं। अहंकार को पुर्ण रुप से हटाने के लिए स्वरूप बोध होना आवश्यक है।
धन्यवाद!

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