जब अत्यन्त आनन्द में होते तो समय के बीतने का अनुभव नहीं होता है। जबदुखी होते तो हमें यह लगता है कि समय बहुत लंबा है।
जब तुम्हारे मन में शान्ति होती है, तब तुम समय के प्रवाह को अनुभव नहीं करते हो। जब तुम्हारे मन में शान्ति नहीं होती तब तुम्हारे द्वारा व्यतीत किया हुआ दो मिनट का समय भी तुहें यह अनुभव देता है कि जैसे दो घंटे बीत गए।
ईश्वर के शान्त क्षण को महाकाल कहा जाता है। शिव को महाकाल के रूप में जाना जाता है। महाकाल का तात्पर्य है बड़ा या महान समय. हम प्राय: यह कहते हैं, ‘मेरा समय बहुत अच्छा/महान था’, क्या यह ऐसा नहीं है? महान समय का तात्पर्य समय शून्य क्षणों के अंतराल में आया हुआ क्षण होता है।
समय को मारना कैसे संभव है? यह अत्यन्त चरम सुख से ही संभव है। जब तुम अत्यन्त आनन्द में होते हो तो तुम्हें समय के बीतने का अनुभव नहीं होता है। जब तुम समय के प्रवाह को नहीं अनुभव करते हो तो यह कहा जाता है कि समय को मार दिया गया है।
समय और अवसाद या दु:ख में एक गहरा संबंध है। जब हम दुखी होते हैं तो हमें यह लगता है कि समय बहुत लंबा है। जब हम प्रसन्न होते हैं, तब हमें समय का अनुभव नहीं होता है। तो प्रसन्नता या आनन्द क्या है? यह हमारी स्वयं की आत्मा है।
यही आत्मतत्व शिव तत्व है या शिव का सिद्धान्त है। प्राय: हम जब भगवान की बात करते हैं तो प्रत्येक व्यक्ति तुरन्त ऊपर की ओर देखता है। ऊपर वहां पर क्या है? ऊपर से केवल बरसात होती है और ऊपर कुछ नहीं है।
प्रत्येक वस्तु हमारे अंदर है, न ऊपर है न नीचे है। अंदर की तरफ देखना या अपने अंदर रहना ही ध्यान है। जब तुम अपने किसी नजदीकी व्यक्ति, अपने मित्र या किसी अन्य की तरफ देखते हो तो तुम्हें क्या लगता है? तुहारे अंदर कुछ-कुछ होता है।
तुम्हें ऐसा अनुभव होता है कि कोई नई ऊर्जा तुम्हारे अंदर से होकर प्रवाहित हो रही है। उन महान क्षणों को पकड़ो। यह वही महान क्षण हैं जो समयशून्य क्षण होते हैं। ठीक है, तुमने उस व्यक्ति की उपस्थिति के कारण उन समयशून्य क्षणों का अनुभव किया होगा।
उस व्यक्ति ने तुहारे अंदर उन भावनाओं को उत्पन्न किया होगा, तो क्या हुआ? उस व्यक्ति विशेष में रुचि रखने के बजाय या उस स्थिति में रुचि रखने के बजाय बस तुम केवल अपने अंदर हो रहे ऊर्जा के स्रोत के प्रवाह के साथ रहो।
ईश्वर ने तुमको दुनिया में सभी छोटे-मोटे सुखों व आनन्द को दिया है, लेकिन चरम आनन्द को अपने पास रखा है। उस चरम आनन्द को प्राप्त करने के लिए तुम्हें उस ईश्वर और केवल ईश्वर के पास ही जाना होगा. अपने प्रयासों में निष्ठा रखो।
ईश्वर से तुम अपने को अधिक होशियार और चालाक बनने की कोशिश मत करो। जब तुम इस चरम आनन्द को प्राप्त करते हो तो बाकी प्रत्येक वस्तुएं आनन्दमय हो जाती हैं। ईश्वर को तुम किस तरह का समय देते हो? अधिकतर तुम ईश्वर को बचा-खुचा समय देते हो, ‘जब तुम्हें कुछ और करने को नहीं होता, जब कोई मेहमान नहीं आ रहे होते, तुम्हें किसी पार्टी में नहीं जाना होता’ यह अच्छा तथा स्तरीय समय नहीं है।
ईश्वर को अच्छा समय दो, इससे तुम पुरस्कृत होगे। यदि तुहारी प्रार्थना स्वीकार नहीं होती तो इसका मतलब है कि तुमने ईश्वर को अच्छा समय नहीं दिया है। सत्संग और ध्यान को अपनी सबसे ऊंची प्राथमिकता दो। भगवान को सबसे महत्वपूर्ण समय दो।
जब तुम भगवान से कोई वरदान प्राप्त करने की शीघ्रता में नहीं हो, तब तुहें अनुभव होगा कि भगवान तुहारा है. जब तुम यह जान जाते हो कि तुम पूरे ईश्वरीय सत्ता के ही एक अंश हो, तो तुम उससे कोई मांग करना बंद कर देते हो। तब तुम जानते हो कि तुहारे लिए सब कुछ किया जा रहा है। प्राय: हम इसे दूसरे तरीके से करते हैं। मन में उतवलापन लेकिन अपने कार्यों में हम सुस्त होते हैं। इसका सही सूत्र मन में धैर्य और अपने क्रियाकलापों में तेजी होती है।