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समय गुज़रता जा रहा है। स्वांसों की पूंजी समाप्त होती जा रही है और इन्सान समझता है कि मैंने कुछ बना लिया, कुछ जमा कर लिया। वह समझता है कि मैंने अनमोल समय में इन क्रमती स्वांसों के बदले इससे बढ़कर धन बना लिया। विचार करके देखा जाए, यदि यह कहे कि मैंने कुछ बना लिया तो स्वाल यह उठता है कि क्या बनाया है? अनमोल जीवन के उपलक्ष्य में झूठी चीजें बना ली कुटुंब परिवार, मित्र सम्बन्धी, मां प्रतिष्ठा प्राप्त कर ली और बड़े गर्व से कहता है कि मैंने कुछ बना लिया।
धन-कुटुम्ब-प्रियजन-जब तक स्वांस हैं तब तक कह सकता है मेरी मिलकियत है, मकान है और मेरी सम्पति है। जब स्वांसों की पूंजी समाप्त हुई कि फिर अपना कुछ भी नहीं। सब चीजें यहीं रह जाएंगी। तो फिर इन्सान के पास क्या रहा? महापुरुष फरमाते हैं —
अरब खरब लौं दरब है, उदय अस्त लौं राज।
तुलसी जोबनिज मरन है, तो आवे केहि काज।।
यह थोड़ी सी सम्पत्ति की बात नहीं, अरबों-खरबों तक धन-दौलत .और सम्पति हो; जहां से सूर्य उदय होता है और जहाँ अस्त होता है अर्थात सारी सृष्टि पर अधिकार हो। वह धन दौलत्वमाल मिलकियत किस काम की? जीवन का समस्त प्रयत्न पुरुषार्थ व स्वांसों की पूँजी इसमें खर्च कर दे और बदले में नाशवान पदार्थ इकठे करता रहे, जाते समय क्या साथ ले जाएगा? जितना धन कमाया, परिवार बढाया, माल-मिलकियत बना ली- वे सब तो यहीं रह गए परन्तु संस्कार उनके साथ चलेंगे।।
नाम जिसके ह्रदय में बसता वही सच्चा धनवान है।
मनन करे जो वचनों पर वह ही परम विद्वान है।।
हित्त चित्त से करे चाकरी सो ही पुरुष प्रधान है।
सजदे में उसके आ झुकता सारा कुल जहान है।।
कुदरत ने इस जीव को मानुष तन प्रदान किया जोकि अत्यन्त दुर्लभ और कीमती है। इसकी प्राप्ति के लिए जीव को याचना करते हुए कितने युग बीत गये कि मानुष तन कब मिले। इसको पाकर मैं भूले हुए काम को पूरा कर सकूँ। लक्ष्य की पूर्ति करके अपने प्यारे प्रियतम से मिलकर सच्चे आनन्द और सच्चे सुख को पा लूँ जिससे कि कई जन्मों से वँचित रहा।।
इस प्रकार इंसान धोखे में आया हुआ है। ‘रतनु तियागी कउडी सगि रचै’– महापुरुषों ने रत्न का एक प्रमाण दिया है। रत्न इसकी तुलना में कोई चीज नहीं। वह भक्तिरूपी रत्न को छोड़कर मायारूपी कौडियों में उलझ गया है।
मनन करे जो वचनों पर वह ही परम विद्वान है।।
हित्त चित्त से करे चाकरी सो ही पुरुष प्रधान है।
सजदे में उसके आ झुकता सारा कुल जहान है।
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शालिनी साही
सेल्फ अवेकनिंग मिशन