भगवान से बड़ा कोई नहीं है। लेकिन,

सदगुरु खुद भगवान नहीं होते, भगवान से मिलें हुए होते हैं। हमें भी भगवान तक पहूंचाने में मदद करतें हैं। सदगुरु का एक हाथ भगवान के हाथ में होता है और एक हाथ से वे हमे पकड़े हुए होते हैं। और इसी कारण सदगुरु का दर्जा भगवान से बड़ा होता है।

क्योंकि ब्रम्हांड नायक, कन कन मे निवास करने वाली कृष्ण चेतना, रोम रोम में निवास करने वाले चैतन्य रुपी राम जब मनुष्य शरीर धारण करते हैं तो वे भी सदगुरु की शरण में जाते हैं। खुद भगवान जीनकी शरणं में हो, वे तो भगवान से बड़े हुए न।

एक जन्मदात्री मां और एक सदगुरु को भगवान से बड़ा दर्जा दिया गया है, जो शास्र सम्मत है।

प्रेमा भक्ति का भी कुछ ऐसा ही है।

प्रेमा भक्ति में, अनन्य शरनागत भक्ति में ईश्वर भक्त के अधीन हो जाते हैं। हम श्रीकृष्ण के पहले राधा जी का नाम लेते हैं न, वह इसी कारण।

राधा जी श्रीकृष्ण परमात्मा की अनन्य भक्त हैं। श्रीकृष्णजी अनन्य प्रेम और भक्ति के कारण राधा जी के अधीन है।

ईश्वर उन सभी के अधीन होते हैं, जो उनसे अनन्य होते हैं। तो जो भगवान के दिल में रहते हों, वह भी भगवान से बड़े हुए ही न।
धन्यवाद।

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