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अब विचार करके देखो कि आपकी गिनती कितनी है। मालिक की भक्ति में कितने जीव लगे हुए हैं।। कई जन्मों के पुण्य जब जागृत होते हैं तो इंसान का मन मालिक की भक्ति में लगता है। सत्संग सुहाता है।। यदि कहीं पास में सत्संग हो रहा हो तो आम दुनियादारों का मन उसमे नहीं लगता क्योंकि उनके ऐसे संस्कार नहीं हैं। पूर्व पूण्य संस्कारों के अनुरूप ही सन्तो की संगति में मन लगता है।
कोटि जनम भ्रमि भ्रमि भ्रमि आइयो।
बड़े भागी साधसंगु पाइयो।।
करोड़ो जन्म , अनेक योनियों में भ्रमण करने के पश्चात जीव को सन्तो की संगति मिली है। पहले कई जन्मों में मनुष्य की माँग थी कि मुझे मानुष-जन्म मिले और सन्त सत्पुरुषों की संगति प्राप्त हो। जिसके अन्दर तीव्र लगन होती है कुदरत उसका प्रबन्ध कर देती है। ईसीलिये महापुरुषों का इस सँसार में अवतरण होता है।।
यह जीवन का सच हैं “जग जीवन साचा एको दाता” इसलिए “तेरा भाना मीठा लागे” तभी से जाना “मेरा मुझ में कुछ नही ” इसलिए “कर दो नाम दीवाना ” यही सत्य हैं “दुखिआ सभ संसार” तो करो “शुक्र सतगुरु का। ” गुरुदेव कहते हैं “गुरु के घर केवल नाम”इसलिए नाम जपना ताकि”धाम अपने चलो भाई पराए देश क्यों रहना, क्योंकि ?
परमात्मा के रचे हुए नाटक में, हमें जो भी रोल दिया गया है, उसे बड़ी खुशी से निभाओ सँसार की किसी भी चीज़ पर या किसी रिश्ते नाते पर अपना हक ना जताओ सब कुछ परमात्मा का है, जैसे हम अपनी कीमती चीज़ों को बहुत सँभाल कर रखते हैं, अपने परिवार का कितना ज्यादा ध्यान रखते हैं, परमात्मा हम से कहीं ज्यादा हमारा ध्यान रखता है, इसलिये हमारा दुःखी होना या चिन्ता करना फिज़ूल है, हमें तो केवल अपने सिमरन और भजन की चिन्ता होनी चाहिये कि ग़लती से भी भजन सिमरन में नाग़ा ना पड़े जी हमारी सोच कुछ ऐसी बन जाये मेरे रामराऐ, ज्यों रखे, त्यों रहियै, तुध भावै ताँ, नाम जपावै, सुख तेरा दित्ता लहीऐ, मेरे राम राऐ, ज्यौं रखे, त्यों रहीऐ।
!! सतगुरू का नाम सुखदाई होता है हर दुःख की दवाई होता है, सुमिरण करो और ध्यान धरो, यही अन्त समय सहाई होता है !!

शालिनी साही

सेल्फ अवेकनिंग मिशन

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