ब्रम्हज्ञान यानी कि आत्मा का ज्ञान। ब्रम्हज्ञान यानी कि अपने “स्व”स्वरुप का अपने भगवद स्वरूप का ज्ञान। सारे विश्व का आधार वह परम सत्य जो कि आत्मा है उस आत्मा का ज्ञान ब्रह्मज्ञान है।
सबके भीतर जो चेतना निवास करती हैं उस चेतना को जानना ब्रह्मज्ञान प्राप्त करना है। जगत का सार, जगत आधार एकमात्र नित्य चेतन सत्ता को ब्रह्म कहते हैं। उस नित्य निर्गुण निराकार चेतन तत्व का ज्ञान होना ब्रह्मज्ञान होना है।
यह ब्रम्ह हमारे अंदर मौजूद हैं लेकिन बहुत जन्मो से अज्ञान में रहने से हम उसे नहीं जानते। हम उसी के साथ रहते हैं, हम वहीं है, लेकिन हम खुद को ही नहीं जानते। यह ख़ुद को जानना ही ब्रह्म को जानना हैं।
हम अज्ञान के कारण खुद से ख़ुद को नहीं जान पाते इसलिए इसे जानने पहचानने, समझने के लिए, इसे प्राप्त करने के लिए जिन्होंने इसे पहले जाना है , पहचाना है, इसका अनुभव किया है ऐसे ज्ञानीपुरुष समर्थ सदगुरू के पास जाना होता है।
जिन्हें आत्मज्ञान, ब्रह्मज्ञान हुआ है और जो हमें भी आत्मा का ज्ञान, उस ब्रम्ह का ज्ञान करा देने में समर्थ है वह है समर्थ सदगुरू। जो अपनी आप से, खुद से मिले मिले हुए हैं, जो अपने निजस्वरुप आत्मराम को जानकर निजआनंद, सच्चिदानंद में मग्न है। और जो हमें भी अपने स्वस्वरुप का सच्चिदानंद स्वरुप का बोध कराने में समर्थ है वह है समर्थ सदगुरू।
तो ब्रम्हज्ञान को आत्मज्ञान को प्राप्त करने के लिए किसी निज आनंद में डुबे हुए आत्मज्ञानी महापुरुष समर्थ सदगुरू के पास जाना होता है। उनकी वाणी से ब्रम्हज्ञान, आत्मज्ञान झलकता है। उनका उपदेश ब्रम्ह का उपदेश होता है, उसे ग्रहण करना होता हैं। उनके मार्गदर्शन में अपने ही भीतर उतरकर, अंदर मुड़कर दिए हुए उपदेश का ध्यान, चिंतन मनन करने से ब्रह्म का ज्ञान हो जाता है।