1. प्रार्थना से करें शुरुआत-
    अब आप साफ वातावरण में किसी आसन पर बैठें. इसके बाद हृदय के पास दोनों हाथ जोड़ कर अपने इष्टदेव को याद करें और मन ही मन में ध्यान साधना को पूर्ण करने के लिए उनसे आर्शीवाद लें, क्योंकि किसी भी कार्य के पूर्ण होने में आपके इष्टदेव का योगदान महत्वपूर्ण होता है.
    पहले मन को देखिए जिस सुख को आप ऐसा मानते हैं कि अमुक सांसारिक प्राणी अथवा पदार्थ से आपको मिला, वह सुख वास्तव में आपको उस वस्तु से नहीं मिला। तनिक गंभीर होकर एकाग्र मन से इस विषय को समझने की आवश्यकता है। दत्तचित्त होकर इसकी गहराई में उतरना अनिवार्य है। धीरे-धीरे एक-एक पग आगे बढ़ाते हुए, एक-एक बात पर ठहरते, सोचते, समझते और उसे सम्यक प्रकार से आत्मसात करते हुए आगे बढ़ना है। पहले मन को देखिए- इस क्रम में आने से पूर्व कुछ समय के लिए मन को रोकिए किसी भी प्रकार के चिंतन अथवा विचारों के प्रवाह से इसी विषय पर अपने आपको केंद्रित कीजिए। – आपका मानना है कि ऐहिक वस्तुओं से कुछ काल के लिए तो सुखोपलब्धि होती ही है जबकि हमारी अपूर्व संस्कृति, हमारी जीवन पथ-प्रदर्शिका गीता जी तथा वेदांत का सारगर्भित सिद्धांत इसका पूर्णतया खंडन करता है और वह खंडन भी अकाट्य तर्कों एवं युक्तियुक्त युक्तियों के साथ हिन्दू धर्म इसे कतई स्वीकार नहीं करता कि किसी भी वस्तु से प्राप्त होने वाला सुख उस वस्तु की देन है। वस्तुतः वस्तुएं सुख रहित हैं इसे निर्विवाद समझिए…
    मन को खुला छोड़ दें
    किसी वस्तु से आपको कब और कैसे सुख प्राप्त हुआ, आइए – एक पग और आगे बढ़ाते हुए इसे समझें। मन की स्थिति पहले ठीक थी, कामना करने से पूर्व मन स्थिर एवं शांत था। किसी प्रकार की भटकन, बेचैनी, अशांति अथवा अस्थिरता इसमें नहीं थी। क्या कामना उठने से पूर्व मन की स्थिति ऐसी नहीं होती ? इसका कभी भी निरीक्षण करके देखिए, आप ऐसा ही पाएंगे। अचानक किसी वस्तु को आपने देखा । वह आपको मनोहारी, चित्ताकर्षक, सुंदर एवं सुखद प्रतीत हुई। अब इसी क्षण एकाएक परिवर्तित हुई मन की स्थिति पर साक्षीवत दृष्टिपात कीजिए। मन को कुछ समय के लिए खुला छोड़ दीजिए। उस वस्तु के प्रति कल्पित सौंदर्य एवं माधुर्य का भाव मन में बस जाएगा और देखते ही देखते आरंभ हो जाएगा उसका चिंतन अब आपकी स्वतंत्रता समाप्त, मन की बनी बनाई शांति विलुप्त, एकाग्रता- स्थिरता से भटक गया आपका मन और पुनः पुनः उस वस्तु के प्रति बनाई गई वह सुख दृष्टि संकल्प विकल्पों के – माध्यम से आपके मन:पटल पर आकर अशांति की कालिमायुक्त घटाएं मन की शांत अवस्था ही सुखकारी यह चक्र यहीं समाप्त होने वाला नहीं, अभी यह मन को और अशांत करेगा; क्योंकि जितना अधिक मन संकल्प-विकल्पों के क्रम में रहेगा, उतनी ही इसकी अशांति बढ़ती जाएगी। प्रसंगानुसार यह स्पष्ट कर देना अच्छा कि मन की शांत स्थिर अवस्था का नाम ही सुख है और संकल्प-विकल्प ग्रस्त मन की अस्थिरता ही दुख का विकराल रूप है। रह-रहकर एक ही वस्तु संबंधी भावों- विचारों का मन में उठना निश्चय ही मन को उस वस्तु के साथ आसक्त कर देगा और मोहपाश में उलझा देगा। फिर यह भी असंदिग्ध है कि मन उसकी प्राप्ति भी करना चाहेगा। सुख- दृष्टि अब कामना के रूप में मन को झकझोरने लगी। अब तो यह वस्तु मिलनी ही चाहिए, इसके बिना भी क्या कोई जीवन है आदि भाव मन में अस्थिरता की लहरें उठाते रहेंगे। फिर आप येन- केन-प्रकारेण उतारु हो जाएंगे उस वस्तु की प्राप्ति के लिए; क्योंकि उसके बिना मन कहीं अन्यत्र सुख-शांति समझता ही नहीं मन की शांति, उसका संतुलन अब केंद्रित है उस वस्तु विशेष पर जिसे उसने सुखद मानकर अपने विचार- राज्य में प्रविष्ट होने दिया और यह प्रविष्टि-ओह! कैसी हलचल सी मचा दी इसने ।
    मिथ्या भ्रम जीवन की घोर भ्रांति है।
    …. मन अस्थिर हो गया और यह अस्थिर ही रहेगा तब तक, जब तक कि उस वस्तु को प्राप्त नहीं कर लेता अपने काम्य प्राणी अथवा पदार्थ की जैसे- तैसे इसे उपलब्धि नहीं हो जाती। इसके लिए अब आप प्रत्येक साधन जुटाने का प्रयास करेंगे। कहना नहीं होगा कि अनुचित और अवैध साधनों को प्रयोग में लाने से भी कदाचित यह दुराग्रही मन नहीं हिचकिचाएगा; क्योंकि प्रश्न जटिल बन चुका है, इसके बिना जीवन जीवन ही प्रतीत नहीं होता। बार-बार चिंतन करके इच्छा इतना तीव्र रूप धारण कर चुकी है कि इसकी पूर्ति हुए बिना अब मन कतई नहीं मानेगा। मान लिया कि अथक परिश्रम के पश्चात जैसे-तैसे आप अपनी अभीष्ट वस्तु की प्राप्ति में सफल हो गए और उस समय आपको सुखानुभूति होगी।
    साधना से पूर्व तैयारी कैसे करें ?
    किसी भी मन्त्र से सम्बन्धित साधना को सफलता के साथ सम्पन्न करने के लिए आवश्यक है कि उसके मूल रहस्यों को अच्छी प्रकार से समझ लिया जाए। ये साधनाएँ दुर्लभ और गोपनीय हैं तथा कोई भी तांत्रिक इन साधनाओं के रहस्यों को उजागर नहीं करता । यह मन्त्र साधना उस हीरे की तरह हैं, जिसके प्रकाश में साधक अपना पथ भली भाँति पहचान सकता है और उस रास्ते पर आगे बढ़ते हुए पूर्ण सफलता प्राप्त कर सकता है । मन्त्र साधना प्रारम्भ करने से पहले साधक को कुछ मूल भूत सिद्धान्तों को भली भाँति समझ लेना चाहिए।
    🏐 शरीर की हलचलों को नजरअंदाज करें-
    इसके बाद सिद्धासन में बैठकर बाएं हाथ को बाएं घुटने पर और दाएं हाथ को दाएं घुटने पर रखें. रीढ़ को सीधे रखते हुए गहरी सांस ले और छोड़ें. अपने शरीर की सभी हलचलों पर ध्यान देते हुए आपके आसपास जो भी घटित हो रहा है उस पर भी ध्यान दें.
    🏐 पूरा ध्यान साँसों पर केन्द्रित करें- मन को एकाग्र और चित्त को स्थिर करने का सर्वाधिक लोकप्रिय और आसान तरीका है साँसों पर ध्यान केन्द्रित करना. इसलिए अब आप अपनी सांसों को छोड़ने और लेने की प्रक्रिया पर ध्यान दें. सांसों की ओर ध्यान देने से चित्त शांत होने लगेगा और चित्त का शांत होना ध्यान की शुरुआत के लिए बेहद जरूरी है.
    🏐महसूस होने के लिए तैयार हों-
    जब आप अपने पूरे ध्यान को अपने साँसों पर केन्द्रित करने में सफल हो जाएँगे तब आपके साथ कुछ अद्भुत और अनोखा घटित होगा. यदि आपको इसमें कठिनाई हो रही है तब आप सिर्फ अपनी सांसों पर ही ध्यान दें।संकल्प कर लें कि पांच मिनट तक अपने दिमाग को शून्य कर लूंगी. अब आप केवल महसूस और देखने के लिए तैयार हैं और जैसे-जैसे सुनना और देखना गहराएगा आप ध्यान में उतरते जाएंगे.
    कितनी देर तक करें? इस ध्यान विधि को नियमित 30 दिन तक 05 मिनट तक करें. 30 दिन के बाद आप 10 मिनट और फिर अगले 30 दिन के लिए 20 मिनट कर दें. इसके बाद आप जितनी अवधि और जब तक करना चाहें कर सकते हैं.
    आखिर में इसका लाभ- प्रदूषण और काम के अधिक दबाव से व्यक्ति तनाव और मानसिक थकान का अनुभव करता है. निरंतर ध्यान करने से मस्तिष्क को नयी ऊर्जा मिलती है और तनाव से बचा जा सकता है. साथ ही ध्यान लगाने वाले व्यक्ति को थकान का अहसास नहीं होता है. गहरी से गहरी नींद से भी कहीं अधिक लाभ ध्यान से मिलता है.
    कैसे करें शुरुआत?
    मेडिटेशन के लिए सुबह का समय उत्तम है. मेडिटेशन करने से पहले ध्यान साधना जरूर करें, इससे सांस स्थिर होती है. इसके लिए चाहें तो आप योग का भस्त्रिका और कपालभाती कर सकते हैं. आप इसके अलावा शरीर को थकाने के लिए कुछ और भी कर सकते हैं. याद रखें कि मेडिटेशन को पूर्ण करने के भी आपकों ध्यान साधना जरूर करना है.
    शालिनी साही
    सेल्फ अवेकनिंग मिशन

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