मृत्यु सत्य नहीं है। और मृत्यु सत्य नहीं है, यह आत्मसाक्षात्कार के बाद साबित हो जाता है।

जिन्होंने भी अबतक आत्मा साक्षात्कार किया है, आत्मा का अनुभव किया है, वे सब यही कहेंगे की मृत्यु अंतिम सत्य नहीं है।

हमारे वास्तविक स्वरूप की मृत्यु नहीं होती और प्रकृति नित्य थोड़ा थोड़ा मरती रहतीं हैं, नया सृजन करतीं रहतीं हैं। और नश्वर शरीर प्रकृति है।

प्रकृति नाशवान है, अस्थिर है। इसलिए बनती बिगड़ती, जन्मती और मरती हैं। भीतर का ईश्वर स्थिर है, अजर अमर है। मृत्यु हमेशा प्रकृति की होती है, परमात्मा की नहीं।

शरीर मरता है, शरीर का अंतिम संस्कार किया जाता है, लेकिन भीतर का साक्षी नहीं मरता। इसलिए मृत्यु सत्य नहीं है, भीतर का साक्षी ही सत्य है।

मृत्यु अटल सत्य है, लेकिन स्थूल शरीर के लिए।

स्थूल शरीर की मृत्यु होगी। उसका अंतिम संस्कार किया जाएगा, लेकिन आत्मा का नहीं, स्थूल शरीर में जो जीवन रहता था उसका नहीं।
धन्यवाद।

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