एक आध्यात्मिक व्यक्ति और साधारण व्यक्ति में वही अंतर होता है, जैसे दो व्यक्ति रात के अंधेरे में घने जंगल से गुजर रहे हों, और एक के पास टॉर्च हो और उसे रास्ता दिख रहा हो, जबकि वहीं दूसरे व्यक्ति के पास रोशनी नही है, और वह अंधेरे में भटक रहा है।
साधारण व्यक्ति का जीवन दिशाहीन होता है, जबकि आध्यात्मिक व्यक्ति को कहां जाना है, अपना रास्ता पता होता है। साधारण व्यक्ति के पास किसी का कोई मार्गदर्शन नही होता, जबकि अध्यात्म की राह में चलने वाले के पास हमारे शास्त्रों, वेदों, पुराणों, महान ग्रंथों, विचारकों, संतो और बुद्ध पुरुषों का ज्ञान होता है, जो पल पल उसका मार्गदर्शन करते हैं।
साधारण व्यक्ति के पास जीवन का उद्देश्य स्पष्ट नही होता, ना साधन ना कोई नियम होता है, जिससे लक्ष्य हासिल हो नही पाता, जबकि आध्यात्मिक व्यक्ति अपनी हर सांस को सार्थक बनाता है। गुरु के आश्रय में खुद को समर्पित करके अपने जीवन को धन्य बनाता है।
साधारण व्यक्ति का जीना और मरना किसी काम नही आता, जबकि आध्यात्मिक व्यक्ति का जीना और मरना दोनो संसार के कल्याण के लिए होता है। ऐसा जीवन वे जीते हैं कि दूसरों के लिए आदर्श इस्थापित करते हैं।
अतः हर साधारण व्यक्ति को अपने को महान बनाने का प्रयास करना चाहिए और जीवन को सार्थक करना चाहिए।