माया के आवरण में, हमारे जन्म से ही अध्यात्म हम सब के भीतर पहले से विद्यमान है। हम अध्यात्म को साथ में लेकर जन्मते है। बात आती है, केवल उसके विकास की, भीतर के उस अध्यात्म का विकास करना केवल मनुष्य शरीर धारियों के लिए संभव होता है।

गृहस्थ जीवन मनुष्य के आध्यात्मिक विकास में, या मोक्ष प्राप्ति में बाधक कदापि नहीं होता है।

हमे संसार में रहना होता है, बस संसार से आसक्ति नहीं रखनी होती। और यह एक कला होती है, जी पहले से सीखी होती है, सद्गुरु मार्गदर्शन में हम सीखते हैं।

जैसे पाणी में रहना, लेकिन पानी में डुबना नहीं है। तैरकर जाना है। हम संसार को भी भव-पूर या संसार-सागर कहते हैं। इस भवपूर में मनुष्य शरीर रुपी बोट में हम बैठे है। इसमें अगर बोट चलाने वाला अच्छा नावाडी हमारे पास है तो पानी कितना भी गहरा क्यो न हो हम बेफिक्र हो जातें हैं।

संसार पूर, संसार सागर के पार ले जाने वाले जो नावाडी होते हैं, उन्हें हम पूर्ण सद्गुरु कहते हैं।

अगर कोई गृहस्थ भी है, बहुत पढ़ा लिखा या बहुत कुछ जानता नहीं है। लेकिन, उसके पास सद्गुरु है, और उन्होंने उसे कुछ साधन दे रखें है, और वह उन साधनों का उपयोग करता है, वह गुरु आज्ञाओं का पालन करता है, तो वह भी तर जाएगा।‌

बेशक अध्यात्मिक विकास में गृहस्थ जीवन की कुछ लिमिटेशन भी होती है। अगर कार्य बहुत बड़ी लेवल पर करना है, हमारे अपने आत्मकल्यान के साथ साथ दूसरे अनेकों लोगों का आत्मकल्यान भी करना है, तो संन्यास लेना ही सही होता है। पत्नी बच्चों का न बनाना ही सही होता है।

Grihasth Geevan Mein Rahtey Huye Adhyatmik Vikash Kaise Karein?

अगर अनेकों का माता पिता बनना है, अनेकों बेसहारों का सहारा बनना है, हजारों लाखों के दिल में रहना है तो गृहस्थी से अच्छा संन्यास लेना, अकेले रहना ही अच्छा है।

क्योंकि अध्यात्म में एक गृहस्थ से ज्यादा संन्यासी को लोग ज्यादा पसंद करते हैं। एक गृहस्थी कितना भी बड़ा तपस्वी क्यो न हो, हजारों लाखों के दिल में जगह नहीं बना पाता। इसके लिए कोई कोई अपवाद है, लेकिन लगभग ऐसा ही है।

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बेशक लीला अवतार में ईश्वर खुद गृहस्थ बनना स्विकारते है, लेकिन वह केवल दूसरों के लिए एक आदर्श स्थापित हो इसके लिए। दुसरे आम लोगों को संसार में कैसे जीना है, यह दिखाने के लिए।

तो अध्यात्मिक विकास में, गृहस्थ जीवन के पहले नैतिक मूल्यों की शिक्षाएं बहुत जरूरी है। यह उनका बेस और फाऊंडेशन होता है। पहले नैतिक मूल्यों की शिक्षा और फिर संसार में प्रवेश।तब सब ठीक होगा।‌

सत्य, धर्म, त्याग, अहिंसा, सेवा, करुणा, कर्त्तव्यों और जिम्मेदारियों को समझना। और फिर गृहस्थ आश्रम में प्रवेश करना। फिर वह गृहस्थ बनें या कही थी रहें, वह मनुष्य जीवन के मूल उद्देश्य-परम लक्ष्य तक आसानी से पहुंच जाता है।
धन्यवाद।

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