मेरी जिंदगी का हो या आपकी जिंदगी का, हम सभी का अंतिम और आख़री एक ही उद्देश्य होता है। और वह है, दुःख की संपूर्णतया निवृत्ति और शाश्वतआनंद, परमआनंद की प्राप्ति, शाश्वत सुख-शांति की प्राप्ति।
हम सभी इसी एक उद्देश्य की पूर्ति के लिए हि निरंतर प्रयास करते रहते हैं। लेकिन ग़लत ढंग से।
यहां सब शाश्वत सुख-शांति ख़ोज रहें हैं, यहां कोई दुःख नहीं चाहता। हम सब परम आनंद, शाश्वत सुख-शांति तो खोजते हैं, पर ग़लत जगह पर। और फिर बाद में यही ग़लत जगह पर सुख-शांति खोजने का प्रयास हमारे अशांति का, हमारे दुःख का कारण बनता है।
हमारे आज़ के दुःख क्लेशो का मूल कारण हमारा ग़लत जगह पर सुख, आनंद ढुंढना ही होता है।
वास्तव में हम सुखस्वरुप, सच्चिदानंद स्वरुप, परमआनंद स्वरुप आत्मा है। हम परमानंद स्वरुप, सच्चिदानंद स्वरुप ईश्वर के अंश है। लगभग हम सभी हमारे अपने इस वास्तविकता को भूले हुए हैं, और इस अज्ञान के कारण ही यहां वहां सुख ढुढ रहें हैं।
मनुष्य का मन सुखी और दुःखी होता रहता है, आत्मा कभी सुखी दुःखी नहीं होती। हम में से लगभग जन अभी केवल सुखी दुःखी होने वाले मन को ही जानते है, अपने वास्तविक स्वरूप को, अपने सच्चिदानंद स्वरुप आत्मा को नहीं जानते।
तो हमारा आख़री उद्देश्य यही है, कि अपने वास्तविक स्वरूप को, सच्चिदानंद स्वरुप को जानना, अपने परम आनंद मयी वास्तविक स्वरूप को जानकर सुख-दु:ख से पार हो जाना। हमेशा के लिए सच्चे सुखी हों जाना।
धन्यवाद।