अनंत गुण है आत्मा के।
आत्मा अनंत गुणों की ख़ान है।
आत्मा अजर-अमर है।
आत्मा चेतन स्वरूप है।
आत्मा सनातनी है।
जब कुछ भी नहीं था तब भी आत्मा थी, आत्मा अभी वर्तमान में है। और भविष्य में जब कुछ भी नहीं रहेगा, तब भी आत्मा रहेगी।

आत्मा अमर है।
आत्मा परम-पवित्र है।
आत्मा अचल है, आत्मा अनंत स्थिर है।
आत्मा शांतस्वरूप है, आत्मा में अनंत शांति है।
आत्मा प्रेमस्वरूप है, अनंत प्रेम आत्मा का स्वभाव है।
आत्मा द्रष्टा है, देखना और जानना आत्मा के गुण है।
अनंत दर्शन, सतत जागृति आत्मा का स्वभाव है।

जड़ देह को साधन बनाकर मेडिटेशन में, या ध्यान में हम अपने भीतर उतरकर अपने स्व-स्वरूप को देख पाते हैं। बाह्य लौकिक जगत में भी अनेकों चीजों को हम देखते हैं। लेकिन हमे यह जानना होगा की जड़ देह देख और जान नहीं सकतीं।
जड़ देह आत्मा के सीवा कुछ नहीं कर सकतीं।
देखने और जानने के यह जो गुण है, यह आत्मा के गुण है।

आत्मा ज्ञानस्वरूप है।
आत्मा में अनंत ज्ञान है।
आत्मा का स्वभाव है अनंत ज्ञान।
पर आत्मा का ज्ञान अज्ञान के कारण ढका हुआ है।
आत्मा यानी हमारा अपना, हमारे स्वयं का वास्तविक स्वरूप।

आत्मा प्रकाश स्वरूप है।
आत्मा में अनंत प्रकाश है।
आत्मा सच्चिदानंद स्वरुप हैं।
आत्मा परमानंद स्वरूप है।
आत्मा में अनंत आनंद है।
आत्मा शक्ति स्वरूप है।
आत्मा में अनंत शक्ति है।
हम सब आत्मा ही है।

हमारा सबका सच्चा स्वरुप आत्मा है।
बस अज्ञान के कारण हम अपने आत्मस्वरूप को,
अपने स्व-स्वरूप को,
अपने शक्तिस्वरूप को, देख नहीं पाते, जान नहीं पाते।

आत्मा खुद परमात्मा है।
आत्मा के उपर का अज्ञान का आवरण हट जाते
ही, आत्मा परमात्मा ही है।

आत्मा सुखस्वरूप है।
आत्मा में अनंत सुख है।
अनंत सुख आत्मा का गुण है।


यह आत्मा अनंत सुखों की धनी होते हुए भी अज्ञान दशा के कारण, उसके उपर पड़े हुए अज्ञान आवरण के कारण बाह्य संसार में भटक रही है, और खुद सुख स्वरूप होकर भी संसार में सुख ढुंढ रहीं हैं। जो की अनंत सुख, अनंत आनंद आत्मा का मूल स्वभाव है।‌

आत्मा में अनंत गुण है।
आत्मा में अनंत शक्ति है।
आत्मा में अनंत सुख है।
आत्मा में नित्य आनंद है।
आत्मा में अनंत ज्ञान, अनंत प्रकाश है।
पर आत्मा के यह सब गुण आत्मा खुद नहीं जानती।
आत्मा के अनंत गुण गुरुकृपा से प्रकट होते हैं।
सदगुरु कृपा से आत्मा के उपर का अज्ञान आवरण हटने लगता है।
और आत्मा के अनंत गुण प्रकट होने लगते हैं।

आत्मा में अनंत गुण मौजूद हैं, पर इनके प्रकटीकरण के लिए जीवन में किसी आत्मज्ञानी महापुरुष की, सद्गुरु आवश्यकता होती है।

अनंत गुणों वाली आत्मा हमारे पास है, पर हमे उसे देखने के लिए सदगुरु की ज्ञानरुपी आख चाहिए। आत्मा में अनंत गुण है, पर उन्हें प्रकट करने के लिए सदगुरु का साथ चाहिए।
जीव को जब शिवस्वरूप सदगुरु मिलते हैं, तब गुरु की कृपा से उसे अपने स्व-स्वरूप का, अपने आत्मस्वरूप का बोध होता है। तब आत्मा के गुण प्रकट होने लगते हैं।

आत्मा खुद ही परमात्मा है।
आत्मा अपने मे ही पूर्ण है।
आत्मा एक तत्व हैं।
आत्मा अविनाशी है।
आत्मा के जन्म-मरण नहीं होते।
आत्मा एक अविनाशी तत्व है, इसलिए आत्मा के टुकड़े नहीं किए जा सकते।

आत्मा का विभाजन नहीं होता।
आत्मा का कभी भी नाश नहीं होता।
आत्मा कभी नष्ट नहीं होती।
शरीर बढ़ता है आत्मा के कारण, लेकिन आत्मा नहीं बढ़ती।
शरीर जवान होता है, बुढा होता है, लेकिन आत्मा जवान और बुढ़ी नहीं होती।

आत्मा सनातन है।
आत्मा तब भी स्थिर थी, आत्मा आज़ भी स्थिर है।‌
आत्मा हमेशा ज्यों का त्यों स्थिर बनीं रहतीं हैं।
अनंत स्थिरता आत्मा का एक गुण है।
अनंत सुक्ष्मता आत्मा का एक गुण है।
आत्मा ब्रह्मांड का सबसे सुक्ष्म तत्व है।
आत्मा आग से नहीं जलती।
आत्मा पाणी से नहीं भीगती।
इतनी सुक्ष्म और पारदर्शी है आत्मा, की इसे तलवार भी नहीं काट सकती।

आत्मा स्वयं प्रकाशित है, आत्मा का स्वयं का प्रकाश है।
आत्मा हमारा वास्तविक स्वरूप है।

हर सजीव के भीतर का चेतन तत्व आत्मा है।
आत्मा सजीवों में निवास करती हैं, निर्जीवों में नहीं।
आत्मा निराकार है, लेकिन चेतन है।
आत्मा का कोई आकार नहीं होता।
इस आत्मा को जानने के लिए आत्मज्ञानी के पास जाना होता हैं।


धन्यवाद!

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