चिंता तो सत्तनाम की, और न चित्तवै दास
जो कछु चितवै नाम बिनु, सोई काल की फाँस
यदि इन्सान को सत्तनाम की चिन्ता है, उसका सुमिरण करता है तो वह सुख में समा जाएगा। यदि अन्य मायावी चीजों की चिन्ता होगी तो दुःखों का शिकार हो जायेगा।।
सँसार में रहते हुए दुनियादार सोचता है कि संसार के कार्य-व्यवहार कैसे हों। उसी सँसार में गुरुमुख भी तो रहता है, उसका कार्य-व्यवहार भी होता है। दुनियादार को युक्ति नहीं मिली, गुरुमुख को युक्ति मिल गई है। गुरुमुख हाथ पांव से काम करता है और दिल में परमात्मा का नाम बसाता है, ईश्वर के नाम का सुमिरण करता है इसीलिए ही सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करता है।।
सत समरथ तें राखि मन, करिये जगत को काम
जगजीवन यह मंत्र है, सदा सुख बिसराम
जब इंसान महापुरूषो के वचनों पर आचरण करता है तो लक्ष्य की पूर्णता भी हो जाती है और इसी में जीवात्मा का कल्याण है।।
नाम जिसके ह्रदय में बसता वही सच्चा धनवान है।
मनन करे जो वचनों पर वह ही परम विद्वान है।।
हित्त चित्त से करे चाकरी सो ही पुरुष प्रधान है।
सजदे में उसके आ झुकता सारा कुल जहान है।।
अधिकांश देखा जाता है कि कुछ व्यक्तियों को ज्यादा सोचने की ऐसी लत लग जाती है ऐसी बीमारी हो जाती है कि वह अपनी सोच के तरीके को बदल नहीं पाते, जिसके कारण उन्हें अपने जीवन में बहुत सारी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।सोच विचार कर कार्य करना एक उचित बात है यह आवश्यक भी है लेकिन निरंतर सोचते ही रहना और उस सोच में इतना गहराई तक डूब जाना कि वह आपके जीवन, आपके जीवन की शांति, आपके सामान्य व्यवहार और जीवन के सभी पक्षों पर दुष्प्रभाव डालने लगे तो यह ओवरथिंकिंग की बीमारी जैसी स्थिति है। इस स्थिति से निकलना और अपने आप को शांत अवस्था में बनाए रखना बहुत जरूरी है।जब यह अवस्था बिगड़ती जाती है तो आगे चलकर यह चिंता तनाव का कारण भी बन जाती है
इसलिए आवश्यक है कि इसे भली-भांति समझ करके इसके प्रति थोड़े सजग होकर के हम इस अवस्था से बाहर आजाएं इस वीडियो के माध्यम से इसी विषय पर मार्गदर्शन किया गया है। अपेक्षा है यह आपके लिए उपयोगी होगा…
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शालिनी साही
सेल्फ अवेकनिंग मिशन

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