⚡✨⚡✨⚡✨⚡✨
गायत्री मंत्र को मंत्रों का महामंत्र भी कहते हैं। यह वेदों का एक महत्वपूर्ण मंत्र हैं। गायत्री मंत्र का जाप करने से चंचल मन नियंत्रित होता है और व्यक्ति के आस पास नकारात्मक शक्तियाँ बिलकुल नहीं आती हैं। ऐसा माना जाता है कि इस मंत्र का जाप करने से कई प्रकार के लाभ होते है और व्यक्ति को मानसिक चिंताओं से मुक्ति मिलती है।
गायत्री मंत्र एक संस्कृत मंत्र है जिसका जप हजारों वर्षों से किया जाता रहा है।
गायत्री मंत्र ‘ऊं भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस् य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।। ‘ को अत्यंत प्रभावी मंत्रों में से एक माना गया है। इस मंत्र का अर्थ होता है कि ‘सृष्टिकर्ता प्रकाशमान परामात्मा के तेज का हम ध्यान
करते हैं, परमात्मा का वह तेज हमारी बुद्धि को सद्मार्ग
की ओर चलने के लिए प्रेरित करें।
इसे वैदिक काल , इसे सबसे पुराने ज्ञात और सबसे शक्तिशाली मंत्रों में से एक माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि इसमें ब्रह्मांड का सारा ज्ञान समाहित है।
मन के दुख, द्वेष, पाप, भय, शोक जैसे नकारात्मक चीजों का अंत हो जाता है। इस मंत्र के जाप से मनुष्य मानसिक तौर पर जागृत हो जाता है। साथ ही कहा जाता है कि इस मंत्र में इतनी ऊर्जा है कि नियमित रूप से तीन बार इसका जाप करने से सारी नकारात्मक शक्तियां नष्ट हो जाती हैं।
गायत्री मंत्र के जाप से पुण्य फल में वृद्धि होती है और कार्यों में सफलता मिलती है। इसलिए शास्त्रों में गायत्री मंत्र के जाप का विधान बतलाया गया है।
इसको जपने से सिद्धियों की प्राप्ति होती है।
कारोबार, रोजगार, संतान की प्राप्ति से लेकर कष्टों से मुक्ति तक में गायत्री मंत्र का जाप फायदेमंद
है
तत्त्वज्ञों का ऐसा मत है कि गायत्री के २४ अक्षरों की व्याख्या के लिए उनका विस्तृत रहस्य समझाने के लिए इन शास्त्रों का निर्माण हुआ है ।। (२) हृदय को जीव का और ब्रह्मरंध्र को ईश्वर का स्थान माना गया है ।। हृदय से ब्रह्मरंध्र की दूरी २४ अंगुल है ।। इस दूरी को पार करने के लिए २४ कदम उठाने पड़ते हैं।
भुर्भुव: स्व: : भू अर्थात धरती भुर्व: अर्थात अंतरिक्ष और स्वः अर्थात स्वर्गलोक । तत्सविदुर्वरेण्यं : त : परमात्मा अथवा ब्रह्म, सवितुः : ईश्वर अथवा सृष्टि कर्ता, वरेण्यम अर्थात पूजनीय । भर्गो : अज्ञान तथा पाप निवारक | देवस्य : ज्ञान स्वरुप भगवान का।
गायत्री मंत्र का अर्थ इसके शब्दों में ही छुपा हुआ हैं, इस मंत्र के हर एक अक्षर व शब्द का अर्थ निम्नलिखित हैं :-
🔆🕉️🔆
यानि प्रणव अक्षर । इसकी ध्वनि कण-कण में समाहित हैं।
भू🔆
यानि भूमण्डल अर्थात भूलोक ।
भुवः🔆
यानि अन्तरिक्ष लोक अर्थात ग्रहमंडल |
स्व:🔆
यानि स्वर्ग लोक।
तत🔆
यानि वो परमात्मा, ईश्वर ।
सवित🔆
यानि ईश्वर बनाने वाला सूर्य
वरेण्यम🔆
यानि वंदना करने योग्य
भर्गो🔆
यानि तेज का या प्रकाश का
देवस्य 🔆
यानि देवताओं का
धीमहि🔆
यानि ध्यान करते हैं
धियो🔆
यानि बुद्धि
यो🔆
यानि जो कि
नः🔆
यानि हमारी
प्रचोदयात् यानि सद्मार्ग की ओर चलने के लिए प्रेरित करे या प्रकाशित करे।
🕯️🕯️🕯️🕯️🕯️🕯️🕯️🕯️
शालिनी साही
सेल्फ अवेकनिंग मिशन

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *