यहां लगभग सब अज्ञानी ही है। खुद को महाज्ञानी पंडित कहलाने वाले भी लगभग अज्ञानी ही होते है।

जो बहुत बोलते हैं, मैं बहुत बड़ा, मैं ऐसा, मैं वैसा, मेरी इतनी पहचान, मेरा इतना नाम, यह सब मेरा मेरा करने वाले, मैं मैं करने वाले, बेहोशी में जीने वाले सभी अज्ञानी है।

जो सबकुछ जानता है लेकिन अपनी वास्तविकता को नहीं जानता अज्ञानी है।
जो सारी दुनिया की ख़बर रखता है लेकिन अपने भीतर नहीं झांकता अज्ञानी है।

जो समय के महत्व को नहीं समझते, दिन भर दूसरों पर ध्यान लगाएं बैठते है, अपना आत्मविश्लेषण नहीं करते, अपना आत्म मंथन नहीं करते। अपने आत्मकल्यान के बारे में नहीं सोचते वे महामुर्ख अज्ञानी होते हैं।

जो सत्य जानकर भी सत्य से मुंह मोड़ लेते हैं, दो कौड़ियों में उसे बेचने निकलते हैं, वे मुर्ख होते हैं।

यह मैं मैं और मेरा मेरा करने वाले, छोटी-छोटी बातों में ज्योतिषी के पास जाने वाले सब महामुर्ख होते हैं।

भाग रहे हैं, नाच रहे हैं, ना जाने क्या क्या कर रहे हैं लोग, और लगभग सब बेहोश है।

जो ज्ञानी है, वह शांत होता है, स्थिर होता है। ज्ञानी कम बोलता है, और किसी भी चीज में उतावला नहीं होता। ज्ञानी किसी से रुठता नहीं, क्योंकि उसे पता है कि यह दुनिया ऐसी ही है।

दिन-रात मै मैं करना, दूसरों पर ध्यान देना, कुछ न कुछ बकते रहना यह सब अज्ञान की निशानियां है। भगवा कपड़े पहनते हैं लोग और अमीरों के आगे नाचते हैं। यह महामुर्ख अज्ञानी होते हैं।

यहां लगभग सब बेहोश है, अज्ञानी हैं।
ज्ञानी तो एखाद होता है, आत्मज्ञानी को ज्ञानी कहते हैं। बाकी सब ज्ञानी होकर भी अज्ञानी है।

जो वास्तविकता जानता है। जो स्वरुप ज्ञान को जानता है। जो संसार में रहते संसार से पार जाता है। जो होश में जीता है, ज्ञानी है।
धन्यवाद।

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