जन्म और मृत्यु का, पुनजर्न्म का कारण ही कार्मिक कनेक्शन या कर्म-बंधन, या आसक्तियां है। कार्मिक कनेक्शन, कर्म-बंधन अच्छे या बुरे दोनों भी हो सकते हैं।
पिछले जन्मों में हमारा कायिक वाचिक मानसिक व्यवहार कैसा था, यह उस पर डिपेंड करता है। की अब हमारे साथ दूसरों से जो व्यवहार होगा वह सौहार्द पूर्ण होगा या दुःखदाई।
एक दृश्य जगत है जिसे हम खुली आंखों से देख सकते हैं। लेकिन इसके पीछे एक अदृश्य जगत कार्य करता है। और अदृश्य जगत दृश्य जगत से कई गुना बड़ा है, और बहुत जटिल भी है। जटिल इसलिए क्योंकि यह खुलीं आंखों से दिखता नहीं लेकिन मनुष्य के जीवन में इसका बहुत बड़ा रोल होता है। जिसे हम त्रिविध ताप कहते हैं, मनुष्य ऐसे त्रिविध तापों की अनेकों डोरियों से बंधा हुआ होता है।
कार्मिक कनेक्शन एक चुंबक जैसा है, इसमें अज्ञात डोर, अज्ञात कारणों से, पिछले कर्म-बंधनो से हम एक-दूसरे से चुंबकीय रुप से आकर्षित होते हैं। कुछ रिश्तों को अपनी ओर खिंचते है या हम उनकी ओर खिंचे चलें जातें हैं।
कभी कभी हम किसी व्यक्ति को पहली बार और बिल्कुल थोड़े से समय के लिए मिलते हैं, लेकिन हमे ऐसा लगता है कि हम पहले भी बहुत बार मिले हैं कहीं। कभी कभी हम दुसरे को पुर्ण रुप से जानते भी नहीं लेकिन उनके लिए सबकुछ करने को तैयार हो जाते हैं। यह पिछला हिसाब किताब बाकी है, और यह कार्मिक कनेक्शन ही हैं।
जब किसी से हमारा अच्छा कार्मिक कनेक्शन हो, तो हमें भीतर से उनके लिए एक अपणापण एक विश्वास की भावना होती है। अगर किसी से कार्मिक कनेक्शन अच्छे नहीं होते, तो उनके मिलते ही हमें असुरक्षितता डर और अलगाव की भावना होती है।
जैसे की हम जानते ही हैं कि, हमारे भविष्य के स्क्रिप्ट राइटर, हमारे भाग्य के भाग्यविधाता हम खुद ही है। तों अभी जो सुख या दुःख हमें किसी से मिल रहा है, वह हमने ही पहले कभी क्रेडिट किया हुआ है।
कोई व्यक्ति इस जन्म में हमे दुःख दे रहा है तो डेफिनेटली हमने पहले कभी उसे दुःख दिया हुआ है और अभी यह जो दुःख का कनेक्शन है, वह उस कर्म के कारण ही है।
जब-तक हमारे मन में किसी के प्रति राग या द्वेष बने रहते हैं, यह कार्मिक कनेक्शन्स भी बनते रहते हैं। और इस जीवन में जो भी अच्छे और बुरे जिनके साथ हमारा राग और द्वेष का कनेक्शन रहा हो, वे लोग दोबारा हिसाब किताब बराबर करने किसी न किसी रूप में आगे भी मिलते रहते हैं।
जब-तक कर्मों का, कार्मिक कनेक्शन्स का हिसाब किताब बराबर नहीं होता, व्यक्ति मुक्त नहीं होता। मनुष्य को कार्मिक के हिसाब से अनुकूलता या प्रतिकूलता हर बार हर जन्म में मिलती रहती हैं।
मनुष्य को चाहिए कि, कोई दुःख दे तों दुःखी न हों। और कोई सुख दे तो उसमें आसक्त भी ना हो।
कार्मिक कनेक्शन यानी एक-दुसरे को सुख दुःख देने वाली दो आत्माएं पहले भी कभी मिली हुई थी, उनका ऋणानुबंध है, उनका सुख या दुःख देने का हिसाब किताब अभी बाकी है। इसलिए वह दोबारा मिलतीं है, और अपना अधुरा हिसाब पुरा करती है।
हर सुख जो दुःख का पुर्व रुप होता है। कोई हमें अभी सुख दे रहा है और हमे वह अच्छा लग रहा है, हम उसमें आसक्त है, तो भविष्य में वह जरूर दुःख का कारण बनेगा। मनुष्य को पुराना सुख-दुख भोगकर आगे के लिए सावधान रहना हैं। मनुष्य को कमल के जैसा संसार में रहकर आत्मा का ज्ञान हासिल करना है, और जैसे ही आत्मसाक्षात्कार हो गया, आत्मा परमात्मा एक हो गयी, सबसे माफी मांगकर निकल जाना है।
एक मनुष्य जीवन ही पिछले अनेकों जन्मों के कर्म-बंधनो की रस्सियां काटने का साधन है। मनुष्य जीवन में मनुष्य को अपने कल्याण के लिए, सुख और दुःख से पार होने के लिए एक तो गुरु का ज्ञान लेना आवश्यक है, या श्रीमद्भगवद्गीता कम-से-कम चार पांच बार तो पढ़नी ही पढ़नी है। क्योंकि उसमें आर्ट ऑफ लिविंग का जो ज्ञान है, उस ज्ञान से मनुष्य पुराने कर्म-बंधनो की रस्सियों को काट देता है। और उस आत्मस्थिति में नये कर्म-बंधन उसे नहीं बंधते।
अगर जीवन में दुःख आतें हैं, और सुख हैं तो भी मनुष्य को सदगुरु चरणों का आश्रय कर लेना चाहिए। अदृश्य कर्म-बंधनो की डोरियों काटने के लिए परमात्मा से माफ़ी प्रार्थना एक अचुक दवा है। हमारे गुरुदेव ने बताई हुई एक चार लाइनों की oponopono प्रार्थना भी कड़वाहट भरे रिश्तों को अच्छे खुशहाल रिश्तों में बदल देती है।
वह प्रार्थना है,
I am sorry.
Please forgive me.
Thank you.
& I love you.