कर्म और भाग्य एक ही चीज के दो पहलू है। कर्म ही भाग्य बनाता है। हमारे शुभ और अशुभ कर्मों के फलस्वरूप ही भाग्य का निर्माण होता है।
दरअसल हम अपने दुखों का दोष परमात्मा को देते है। हम कहते है कि मैने सबके प्रति अच्छे भाव रखें या सबके बारे में अच्छा ही सोचा लेकिन इसके उपरांत भी मुझे ही क्यों दुःख मिल रहे है, परमात्मा मुझे किस बात की सजा दे रहे है?

आज हमें यदि दुःख मिल रहा है तो यह हमारे ही बुरे कर्मों का नतीजा है। हमें आज भले ही याद न रहता हो लेकिन पिछले कई जन्मों में हमने जो भी कर्म किए है उसके साक्षी परमात्मा है। परमात्मा सत्यवरूप है और सभी जीवों को समान दृष्टि से देखते हैं। वो सबके साथ समान न्याय करते है।

हमें लगता है कि ये परमात्मा का कैसा न्याय है कि कितने दुष्ट,लोभी व्यक्तियों के पास प्रचुर मात्रा में धन होता है,लेकिन किसी सज्जन व्यक्ति के पास धन नहीं होता है। तो इसका यह कारण है कि आज जो व्यक्ति दुष्ट और लोभी है उसके पिछले कर्मों के कारण उसके पास धन है,लेकिन किसी को छलकर कमाया हुआ धन आगे चलकर बहुत दुख देता है।

स्वयं परमात्मा भी मनुष्य शरीर में अवतरित होते है तब उन्हें भी कर्म सिद्धांत लागू होता है। कर्मसिद्धांत से किसीको छुटकारा नहीं है। रामायण में इसकी कहानी भी है।

जब सुग्रीव और वाली के बीच युद्ध चल रहा था तब भगवान राम ने वाली पर पीछे से वार किया था जिससे वाली की मृत्यु हो गई थी। तब भगवान राम ने कृष्णावतार में वाली के हाथों से ही अपनी मृत्यु चुनी। वाली तब एक जरा नामक शिकारी के रूप में था। श्रीकृष्ण पीपल के पेड़ के नीचे विश्राम कर रहे थे, तभी एक शिकारी ने उन्हें हिरण समझकर तीर चला दिया।तीर लगने के बाद, कृष्ण ने अपना मानव शरीर त्याग दिया और बैकुंठ या गोलोकधाम चले गए।

इसीलिए सदैव अच्छे कर्म करें और सारे कर्म परमात्मा के चरणों में समर्पित करते जाए। क्योंकि समर्पण से मन में अहंकार नहीं आता। सदगुरु परमहंस महाराज ही परमात्मा का स्वरूप है।


ॐ श्री परमहंसाय नमः यह दिव्य मंत्र हमारे बुरे कर्मों को जलाता है। इस मंत्र को जपने से हमें सद्बुद्धि मिलती है और हम बुरे कर्म करने से बचते है। अपने सदगुरु की आज्ञा पालन करना और उनके चरणों की सेवा करना यही परम भाग्य है।

!!ॐ श्री परमहंसाय नमः!!

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