टैलीपैथी यह आध्यात्मिक राह पर बहुत आगे बढ़े हुए, शांतमन, अंतर्मुख, अपने मन का लगभग लय करके विश्व मन से एकरुपता हासिल किए हुए व्यक्तियों को मिलने वाली एक सिध्दि या एक शक्ति हैं।
जो अपने भीतर उतरे हुए हैं, जिन्होंने बाह्य जगत के साथ साथ अंतर जगत का ज्ञान हासिल किया है। या उनकी कुछ पिछली साधना के कारण या उनके गुरु की कृपा से उनके भीतर का अध्यात्म जागृत हुआ है, ऐसे लोगों में टैलीपैथी की शक्ति अपनी आप ही विकसित होती है।
आत्मज्ञान की अवस्था में, अपने मन के विचार शांत होने के बाद, अंतर्मुखता के कारण दुसरो के मन पढ़ने की या दुसरो के मन में कुछ मेसेज भेजने की शक्ति विकसित हैं।
यह टैलीपैथी का जो खेल है वह शांतमन आत्मज्ञानी महापुरुषों का काम है। चंचल मन के आम इंसानों को यह बात समझ नहीं आएगी और आएगी तो भी चंचल मन के कारण भेजा हुआ मेसेज रिसीव करना नहीं आता।
जो लोग बचपन से ही शांतमन, अंतर्मुख, अध्यात्मिक होते हैं या किसी सच्चे सदगुरु के दास-शिष्य होते हैं।
जिन्होंने आत्मज्ञान का अभ्यास किया होता हैं, जो नित्य ध्यान-अभ्यास मेडिटेशन करते हैं उनमें यह टैलीपैथी की शक्ति विकसित होती है।
जिनकी तिसरी आंख खुली होती है, उनमें भी यह टैलीपैथी यानी बिना बोले दूर से ही कोई मेसेज या विचार भेजने की क्षमता विकसित होती है। अपने गुरु ने भेजें हुएं मेसेज वे रिसीव कर सकते हैं।
गुरु और शिष्यों के बीच में संवाद स्थापित करने के लिए इसी शक्ति का उपयोग होता है। गुरु कोसों दूर होते हैं और अपने अंतर्ज्ञान से, इस टैलीपैथी से अपने शिष्यों को संदेश भेजते हैं और सतशिष्य उस संदेश को रिसीव भी करते हैं।
शिष्य की अध्यात्मिक स्थिति सदगुरु को इसी शक्ति के कारण पता चलतीं है। और यह बिल्कुल सत्य बात है।
अध्यात्मिक जगत में शरीर गौण होता है, अध्यात्मिक जगत में शरीर का ज्यादा महत्व नहीं होता। अध्यात्मिक जगत में शरीर केवल एक साधन है। सच्चे अध्यात्मिक जगत में सब बातें मन के लेवल पर और उससे भी परे की अवस्था तुरीयातीत अवस्था पर होता है।
ध्यान से धीरे धीरे मन का लय होता है। आगे चलकर गुरु कृपा से भीतर का साक्षी घटित होता है। तब व्यक्ति एक व्यक्ति न रहकर साक्षी बनकर रहता है। तब वह हर चीज़ के पिछे के रहस्य जानने लगता है। तब वह बाह्य इंद्रिय से नहीं, तब वह मुंह से नहीं बोलता। तब मुंह से नहीं, भीतर ही भीतर मन ही मन बातें होती हैं। इसी को ही टैलीपैथी या दूरानुभूति कहते हैं।
टैलीपैथी मतलब अपने मन की बात, विचार या कोई मेसेज बिना बोले बिना ओंठ हिलाए किसी दुसरे के मन में पहुंचा देना, या रिसीव करना।
जिनको भी “अहं ब्रम्हास्मि” की अनुभूति हुई है। जिनके भीतर अद्वैत घटित हुआ है। जो विश्व मन से एकरुप हुए हैं वे और ऐसे साधक एक-दुसरे से टैलीपैथी के थ्रू बातें करते हैं। जैसे की मेरे गुरुदेव जब भी मुझे याद करते हैं तो मुझे पता चल जाता है।
यह शक्ति ध्यान-धारणा मेडिटेशन से, अध्यात्मिक साधना से अंतर्मुखता से मिलती है। ध्यान-धारणा मेडिटेशन से, अध्यात्मिक उंचाई से, विश्व मन से एकाकारता से हम दुसरो के मन पढ़ने के काबिल हो जातें हैं।
हम बाहर से भले अलग-अलग दिखते हो, लेकिन भीतर से हम-सब एक ही है। हमारे, हम सबके शरीर बाहर से बर्तनों जैसे, उपकरणों जैसे एक ही चीज मिट्टी से बने हैं। हमारे शरीर मिट्टी है। बेशक यह हाड़-मांस या इसमें कुछ और दिखता हो लेकिन यह मिट्टी है। यह खानें से बढ़ा है और खाना मिट्टी का रुपांतरण है। इस कारण हम सब बाहर से भी एक है और भीतर से भी एक है। हम सबके बाहर प्रकृति है और भीतर परमात्मा।
तों जब हम उस भीतरी अवस्था तक पहुंचते हैं, जब भीतर मौन और साक्षी घटित होता है तब हमें दुसरो की, सामने वालों की बातें पता चलने लगतीं हैं।
जब भीतरी मौन घटित होता है, जब हम अध्यात्मिक राह पर सही सही आगे बढ़ते हैं, जब सदगुरु चरणों से सच्चा प्रेम हो जाता है तब पता लग जाता है की इस जगत में हमारे सच्चे सदगुरु कौन है।
हमारे कुलदेव-कुलदेवी कौन है। हमारे गुरुदेव हमसे क्या कहना चाहते हैं। हमारे पुर्वजों की स्थिति क्या है। पृथ्वी मां हमसे प्रेम करती है और हमसे क्या चाहती है। तब हवा स्पर्श कर कुछ बात करती है।
तब इष्टदेव से संदेश मिलने लगते हैं। तब अपने गुरुदेव अपने ही हृदय में नजर आने लगते हैं। तब केवल दृश्य के भीतर से देखने वाला बचता है। तब केवल एक साक्षी बचता है। तब दुसरो का मन भी पता लग जाता है।
तब भविष्य की कुछ घटनाओं का भी पता लग जाता है। दोस्तों तब पता लग जाता है कि अगर हम गुरुचरणो तक न पहुंचे होते, अगर हमने समर्पण और सेवा को न अपनाया होता तो भविष्य में हमारी अपनी स्थिति क्या होती।
दोस्तों यह सब अपने को जान लेने के बाद की स्थितियां हैं। और इसके सर्वेसर्वा सदगुरु होते हैं।जिसने अपने को जान लिया, समझों उसने सबको जान लिया, उसने सारे जगत को जान लिया। जिसने अपने मन को जान लिया, वह जगत के मन को भी जान जाता है।
धन्यवाद!