मंत्र-जाप हमेशा अमृतवेला में उठकर, अपने ही घर के शांत साफ़ सुथरे कोने में। या कोई साफ़ सुथरा खाली कमरा हो तो वहां पर हाथ पैर स्वछ धोकर। प्लास्टिक या उन के स्वछ आसन पर सुखासन में बैठकर। पिठ को सिधा , रीढ़ की हड्डी को सीधा रखकर अपने सद्गुरु की स्वरुप की ओर देखते हुए शांत मन से किया जाता है।
लेकिन अगर किसी को बैठने में कुछ परेशानी है, या कोई बीमार है, या उम्र की वजह से कोई सीधा बैठ नहीं सकते। तो लेटकर भी सिमरन या जाप किया जा सकता है।
जाप का मुख्य उद्देश्य होता है सुरती और शब्द का मेल होना। सुरती शब्द में लीन हो, जाप करते वक्त शब्द के सिवा कुछ याद न हो बस वही जाप है।
जाप के चार प्रकार होते हैं। उनमें से मानसिक जाप, अजपा जाप सर्वश्रेष्ठ है। इसमें ज्यादा कुछ नियम नहीं होते। मानसिक जाप को, अजपा जाप को हम बैठकर या लेटकर, बस में या ट्रेन में, आफिस में, या रसोई बनाते वक्त कभी भी कहीं भी कर सकते हैं।
परमात्मा के दरबार में सच्चे दिल से की हुई हरबात मानी जाती है। परमात्मा हमारे भाव देखते हैं, हमारा बाह्य नहीं देखते। भक्ति अंतरंग का विषय है बाहर का नहीं। तों जो भी हो अंतरंग में हो, अंतरंग का हो। सुरती और शब्द एक हो सब माना जाएगा।