
दुख या सुख भगवान हमें नही देते बल्कि इसके निर्माता हम खुद होते हैं। परमात्मा ने धरती पर भेजकर, किस प्रकार का जीवन जीना है यह हम पर छोड़ा है। हमे पूरी स्वतंत्रता है कर्म करने की। हम अच्छा और बुरा दोनो कर्म कर सकते हैं, और उसी आधार पर हमारा हिसाब–किताब परमात्मा देखते हैं। और एक न्यायाधीश के तौर पर वो हमे हमारे कर्मो के अनुसार अगला जीवन देते हैं। इसमें सबकुछ हमने अपने आप लिखा होता है।
कर्म की कलम से अपना भाग्य हम लिखते हैं। इसलिए जागृत मनुष्य सबसे पहले अपने कर्मो को सुधारता है। इसके कुछ और कारण हैं जैसे जो मिला है उसमे असंतुष्ट रहना, और कामनाओं और वासनाओं का पूरा ना होना। अज्ञानता के कारण संसार के नश्वर चीजों में मोह होना। मानव जीवन कितना अनमोल है, इसका महत्व ना समझ पाना। इस प्रकार मानव के दुख के कई कारण होते हैं। उनके व्यक्तिगत जीवन की समस्याएं अलग अलग होती है। जो इन सबसे ऊपर उठाकर ज्ञान प्राप्त कर लेता है, वही दुख और सुख दोनो से परे हो जाता है।