
हां बिल्कुल। भगवान की जगह सदगुरु की पूजा की जा सकती है, कर सकते है।
भगवान को हम नहीं जानते। भगवान को हमने नहीं देखा। हमने तो बस सदगुरु को देखा है। और केवल सदगुरु के कारण ही आज़ हम भगवान को जान पहचान पा रहे हैं, उनका अनुभव कर पा रहे हैं।
“कृष्ण को हम नहीं जानते थे, सदगुरु के कारण कृष्ण से मुलाकात हो गई। सदगुरु ने दिखा दिया, अनुभव कराया कि, कृष्ण यही है, सदा से है। सदा विद्यमान है। हमारे ह्रदय के भीतर रहते हैं। हमारे अंदर बाहर रहते हैं।”
वह भगवान जिन्हें हम कृष्ण कहते हैं, निराकार है। और सदगुरु जो है, साकार है। सदगुरु भगवान को हम जानने है, देख सकते हैं, उनसे बात कर सकते हैं।
सदगुरु अपने ज्ञान के कारण निराकार भगवान से एक-रुप होते है। मिलें हुए होते हैं। धरती पर के साकार भगवान सदगुरु ही होते है। इसलिए जगत में सब जगह साकार भगवान समझकर सदगुरु की पूजा की जाती है। की जानी चाहिए।

भगवान समझकर लोग पेड़ पौधों को, पत्थर को, ना जाने किस किस को पूजते हैं। मैं कहता हूं कि, पेड़-पौधों को पानी दो, ठीक है। गाय को चारा दो, लेकिन भगवान का दर्जा केवल सदगुरु को दो। क्योंकि वहां प्रकट है। ज्ञान स्वरूप है।
जिन्होंने तुम्हें आत्मा स्वरुप के दर्शन कराए। जिन्होंने आत्मा सो परमात्मा का ज्ञान दिया। जिन्होंने ईश्वर और नश्वर में भेद समझाया। जिन्होंने जीतें जी मुक्ति दिलाई। जिन्होंने ज्ञान गुट्टी पिलाकर नालायक से लायक़ बनाया वहीं तुम्हारे असली भगवान है।
भगवान की पूजा निराकार की पूजा है। और सदगुरु की पूजा साकार की पूजा है। जो निराकार है, उसे कैसे और कहां से पूजेंगे? इसलिए ज्ञानदाता सद्गुरु ही भगवान है। अनन्य भाव से भगवान समझकर सदगुरु की पूजा करना सही है।
तुम्हारी शरीर की जन्मदात्री मां, तुम्हारे आत्मा के जन्मदाते सदगुरु तुम्हारे लिए असली भगवान है।
धन्यवाद।
