हां! भाग्य को गुरुभक्ति से बदला जा सकता है। हमने बदला है।

पिछले जैसे कर्म होते हैं वैसा हमारे आज़ का भाग्य या प्रारब्ध बनता है। और वह हमारे पिछले कर्मों का फल यानी भाग्य या प्रारब्ध आज़ वर्तमान जीवन में भोगकर ही समाप्त किया जा सकता है। लेकिन,
लेकिन सदगुरु चरणों का स्पर्श होते ही, सदगुरु का जीवन में आगमन होते ही भाग्य जो भी हो, जैसा-कैसा भी हो बदल जाता है।

सदगुरु के जीवन में आने के बाद हमारी ज्ञान दृष्टि खुलतीं है। हमारी सही ग़लत की समझ बढ़ती है। सदगुरु के जीवन में आने के बाद हम नम्र-विनम्र हो जातें हैं। हमारे भीतर का अहंकार मिटते जाता है। सदगुरु के जीवन में आने के बाद हम सत्कर्म करने लगते हैं। सदगुरु के जीवन में आने के बाद हम हमसे जानें अंजाने में जो भी दुष्कर्म घटित हुए हैं, उसके लिए माफ़ी मांगने लगते हैं। हम पुरानी गलतियों का प्रायश्चित करते हैं और यही से हमारा भाग्य का बदलना शुरू होता है।

और यही गुरुकृपा है। इसलिए कहते हैं कि, सदगुरु का जीवन में आगमन होने से मनुष्य का पुनजन्म होता है। सदगुरु ही जीव के सच्चे भाग्य विधाता है, सदगुरु के जीवन में आने से मनुष्य का भाग्य बदल जाता है।

हमारे पुर्व कर्म हमारा भाग्य है और उसको भोगकर समाप्त किया जाता है। कर्म का घटित होना और कर्म के हिसाब से कर्मफ़ल का आना यह प्रकृति का अटल नियम है। उसमें अन्य कोई भी बदलाव नहीं कर सकता। खुद परमात्मा भी कर्म के खेल में हस्तक्षेप नहीं करते। लेकिन मित्रो सदगुरु भक्ति में वह ताकत है की वह हमारा भाग्य बदल सकती हैं।

सदगुरु की अनन्य भक्ति भक्त के दुर्भाग्य को सौभाग्य में बदलतीं है। और इसलिए भगवान शिव भी सदगुरु के, सदगुरु भक्ति के गुनगान गाते हैं। गुरुगीता के माध्यम से हमें गुरुभक्ति का महात्म्य समझाते हैं।

गुरु के अनन्य शरनागती में, अनन्य गुरु भक्ति में बहुत बहुत ताकत है, बस सदगुरु सच्चे होने चाहिए। जो सदगुरु की शरण में जातें हैं, जो सदगुरु से अनन्य प्रेम करते हैं, जो सदगुरु से अनन्य हो जातें हैं उनका दुर्भाग्य सौभाग्य में बदल जाता है।

भक्ति करों, भक्ति करों, लेकिन भक्ति केवल सदगुरु की करों। भक्ती करों लेकिन भक्ति केवल गुरुतत्व की करों। एक को निष्ठा और सबकों प्रतिष्ठा के हिसाब से अपने सदगुरु के प्रति अनन्य हो जाओ और समस्त गुरुतत्व के प्रति नम्र-विनम्र हो जाओ। समस्त गुरुतत्व के आगे झुक जाओ। विनम्रता से सबकों सम्मान दो। बाहर से भले ही सब अलग-अलग दिखाई देते हो, भीतर से सब एक ही हैं। जैसे समस्त नदियां अपने अलग-अलग जगहों से जाकर एक समंदर से मिलतीं है, समस्त गुरुतत्व का भी ऐसा ही है।

सदगुरु निराकार परमात्मा का साकार अवतार होते हैं, सदगुरु हमारे भीतर की आत्मा है, सदगुरु प्रकट कृष्ण है। हमारी आत्मा कृष्ण है, आत्मा परमात्मा है।

जब सदगुरु प्रसन्न होकर शिष्य के माथे पर हाथ रखतें हैं तो शिष्य का भाग्य बदल जाता है।
जब हम अनन्य भाव से अपना माथा सदगुरु श्रीचरणों पर रख देते है तो भाग्य बदल जाता है।
जब हम सदगुरु के प्रति समर्पित हों जातें हैं, उनपर कुर्बान हो जातें हैं, उनके उपदेशों पर चलते है तो भाग्य बदल जाता है।
सच्चे सदगुरु के सच्चे अनन्य शिष्य या भक्त का दुर्भाग्य भी सौभाग्य में बदल जाता है। बस भक्ति सच्ची होनी चाहिए।
धन्यवाद!

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