
कर्म स्थूल के साथ साथ सूक्ष्म, कायिक वाचिक मानसिक रूप से होते हीं है। बीना कर्म करें हम नहीं रह सकते। कर्म तो सदा होते ही रहते हैं। बस होश में हों तो इनका अच्छा फ़ल आता है। बेहोशी में हो ,तो यह दुःख का, असफलता का कारण बनते हैं।
कर्म और भाग्य दोनों एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। हमरा आज़ का भाग्य पिछले कर्मो का ही फ़ल होता है।
किसी के बारे में बुरा सोचना भी कर्म में आता है।
किसी को गाली देना भी कर्म में आता है।
किसी को सही मोटिवेशन देना भी कर्म में आता है।
केवल साक्षी भाव में रहना अकर्म स्थिति है। बाकी सभी स्थितियों में कर्म होते रहते हैं।
अगर भविष्य के लिए अच्छा भाग्य चाहिए तो आज़ वैसे कर्मो को करना होगा। कर्म बीज होते हैं न, जैसे कर्म वैसा फ़ल।
हमारे भीतर जो अच्छे या बुरे विचार चलते हैं, उसके पिछे भी पिछले बहुत सारे कर्म होते हैं।
कोई भी कर्म फ़ल देने के लिए तैयार होता है, तो सबसे पहले हमारे भीतर वैसे विचार उठते हैं और हम फिर वैसी कृति करतें हैं। पिछले अच्छे बुरे भाग्य के कारण ही फिर एक नया विचार उठता है, एक नया कर्म बनता है। तोह यह सब खिचड़ी जैसा है। एक दूसरे से जुड़ा हुआ है।

कायिक वाचिक मानसिक कर्म फल को ही हम भाग्य कहते हैं। यह भाग्य भविष्य में होने वाले कर्मो को प्रभावित करता हैं, जरुर करते है। आज़ वर्तमान में किसी भी कार्य में बार-बार असफल होना यह वही दर्शाता है कि भाग्य साथ नहीं दे रहा। पिछले कर्म अच्छे नहीं है। कुछ तो अच्छे कर्मों की यानी पुण्यों की कमी है।
जैसे नया बिज़नस शुरू करना, या रिश्तों को सुधारने की कोशिश करना हो। ऐसा कुछ भी हों सकता है, लेकिन उसमें अगर हम असफल होते हैं, तो पिछले कर्म यानी आज़ का भाग्य कमजोर है ऐसा समझों।
पिछले अच्छे कर्म या अच्छा भाग्य साथ में होता है तो मनुष्य को सुबुद्धि सुझती है। उसके आज़ के सभी कार्य आसानी से होते है। उसका अच्छा होना ही होता है, वह बस निमित्त मात्र होता है।
जीनको किसी भी कार्य में बार-बार असफलता आ रही है, जीनके वर्तमान में जीतोड़ मेहनत करने पर कर्म फ़ल नहीं दे रहे, तोह उनको पहले अपने पिछले कर्मो को ठीक करना होगा। उनका भाग्य कमजोर है ऐसा हम कह सकते हैं। और पिछले कर्मो को ठिक किया जा सकता है। आज़ अच्छे कर्मों के बीज बोकर सुनहरा भविष्य लिखा जा सकता है।
धन्यवाद।
