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🪵 जिस प्रकार चंदन वृक्ष अपने निकट के वृक्षों को भी सुगंधित बना देता है ऐसे ही अपने सान्निध्य द्वारा शिष्य को तारने वाले चंदन गुरु वाणी से नहीं, आचरण से हममें संस्कार भर देते हैं।
🌟 गुरु जो सार है वह ब्रह्म-परमात्मा है, असार है वह प्रकृति का शरीर प्रकृति का शरीर प्रकृति के नियम से रहे लेकिन आप अपने ब्रह्म-स्वभाव में रहें।
💥 अपनी अनुग्रह- कृपा द्वारा अपने शिष्यों का पोषण कर दें, दीदार दे दें, मार्गदर्शन दे दें; अच्छा काम करें तो प्रोत्साहित कर दें।
☀️ जैसे पारस अपने स्पर्श से लोहे को सोना कर देता है, ऐसे ही गुरु अपने हाथ का स्पर्श अथवा अपनी स्पर्श की हुई वस्तु का स्पर्श कराके हमारे चित्त के दोषों को हरकर चित्त में आनंद, शांति, माधुर्य एवं योग्यता का दान करते हैं।
🌟जैसे मादा कछुआ दृष्टि मात्र से अपने बच्चों को पोषित करती है, ऐसे ही गुरुदेव कहीं भी हों अपनी दृष्टिमात्र से, नूरानी निगाह मात्र से शिष्य को दिव्य अनुभूतियाँ प्रदान कराते रहते हैं।
🌝जैसे चन्द्रमा के उगते ही चन्द्रकांत मणि से रस टपकने लगता है, ऐसे ही गुरु को देखते ही हमारे अंतः करण में उनके ज्ञान का, उनकी दया का, आनंद, माधुर्य का रस उभरने, छलकने लगता है। गुरु का चिंतन करते ही, उनकी लीलाओं, घटनाओं अथवा भजन आदि का चिंतन करके किसी को बताते हैं तो भी हमें रस आने लगता है।
🪞 जैसे दर्पण में अपना रूप दिखता है ऐसे ही गुरु के नजदीक जाते ही हमें अपने गुण-दोष दिखते हैं और अपनी महानताका, शांति, आनंद, माधुर्य आदि का रस भी आने लगता है, मानो गुरु एक दर्पण हैं। गुरु के पास गये तो हमें गुरु का स्वरूप और अपना स्वरूप मिलता-जुलता, प्यारा- प्यारा लगता है। वहाँ वाणी नहीं जाती, मैं बयान नहीं कर सकूँगी। जो अनुभूतियाँ होती उनका मैं वर्णन नहीं कर सकती।
🪔 जैसे एक अजगैबी देवपक्षी आकाश में उड़ता है और जिस व्यक्ति पर उसकी ठीक से छाया पड़ जाती है वह राजा बन जाता है। यह छायानिधि पक्षी आकाश में उड़ता रहता है किंतु हमें आँखों से दिखाई नहीं देता। ऐसे ही साधक को अपनी कृपाछाया में रखकर उसे स्वानंद प्रदान करनेवाले गुरु छायानिधि गुरु होते हैं। जिस पर गुरु की दृष्टि, छाया आदि कुछ पड़ गयी वह अपने-अपने विषय में, अपनी-अपनी दुनिया राजा हो जाता है। राजे-महाराजे भी उसके आगे घुटने टेकते हैं। यह सामर्थ्य मेरे गुरुदेव में व्याप्त है।
💎 नादनिधि मणि ऐसी होती है कि वह जिस धातु को स्पर्श करे वह सोना बन जाती है। पारस तो केवल लोहे को सोना करता है। गुरु मुमुक्षु की करुण पुकार सुन कर उस पर करुणा करके उसे तत्क्षण ज्ञान दे देते हैं। मुमुक्षु के आगे स्वर्ण तो क्या है, हीरे क्या हैं, राज्य क्या है? वह तो राज्य और स्वर्ण का दाता बन जाता है। नादनिधि मणि से भी उन्नत, गुरु की कृपा और गुरु का ज्ञान काम करता है।
लेकिन उससे भी कई नादनिधि चमकाने में सामर्थ गुना चमत्कारी मेरे गुरुदेव की वाणी और कृपा है। मैं उनके चरणों में अब भी नमस्कार करती हूँ। मेरे गुरुदेव की पूजा मैं उनके चरणों में अब भी नमस्कार करती हूँ। 🙇🏼‍♀️🌹मेरे गुरुदेव की पूजा के आगे नादनिधि मणि, चिंतामणि, पारसमणि कुछ भी नहीं है। पारसमणि वालों के पास इतने लोग नहीं होते हैं।🌹
🦅 जैसे मादा क्रौंच पक्षी अपने बच्चों को समुद्र-किनारे छोड़कर उनके लिए दूर स्थानों से भोजन लेने जाती है तो इस दौरान वह बार-बार आकाश की ओर देखकर अपने बच्चों का स्मरण करती है। आकाश की ओर देख कर अपने बालकों के प्रति सद्भाव करती है तो वे पुष्ट हो जाते हैं। ऐसे ही गुरु अपने चिदाकाश में होते हुए अपने शिष्यों के लिए सद्भाव करते हैं तो अपने स्थान पर ही शिष्यों को गुदगुदियाँ होने लगती हैं, आत्मानंद मिलने लगता है। और वे समझ जाते हैं कि गुरु ने याद किया।
🌞 सूर्यकांत मणि में ऐसी कुछ योग्यता होती है कि वह सूर्य को देखते ही अग्नि से भर जाती है, ऐसे ही अपनी दृष्टि जहाँ पड़े वहाँ के साधकों को विदेह मुक्ति देनेवाले “गुरु” होते हैं। शिष्य को देखकर गुरु के हृदय में उदारता, आनंद उभर जाय और शिष्य का मंगल- ही मंगल होने लगे, शिष्य को उठकर जाने की इच्छा ही न हो। गुरु का अपना स्वभाव ही बरसने लगे। तीरथ नहाये एक फल… अपनी भावना का ही फल मिलेगा। संत मिले फल चार… धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष मिलेगा लेकिन आत्मसाक्षात्कारी , गुरु मिले तो हर एक आत्मा का आत्मसाक्षात्कार हो जाए।
बोलो जयकारा बोल मेरे गुरु महाराज की जय 🙇🏻‍♀️
शालिनी साही
सेल्फ अवेकनिंग मिशन

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